वृटवृक्ष की छांव को भेद रहा, धूप का झुलसाने वाला मिजाज
अजय तिवारी वटवृक्ष से संवाद के लिए लंबे अर्से बाद पहुंचा था। तूफान के पहले की खामोशी थी, हो भी क्यों न, जो छांव में से धूप झांक रही थी। छांव की तलाश में नीचे खड़े लोग तपिश का अहसास कर रहे थे। कुछ देर शांत खड़ा रहने के बाद वटवृक्ष से संवाद की शुरूआत…