चरम उत्कर्ष काल.. बीजेपी का हर फैसला सही!
अजय तिवारी, भोपाल डॉट कॉम
सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ना। विधायकों को सांसद का चुनाव लड़ना। किसी पार्टी की बहुमत के लिए रणनीति हो सकती है, लेकिन उपचुनाव और उस पर होने वाले खर्चे के लिए जिम्मेदार कौन? इस सवाल का जवाब कुछ भी दिया जाए पर बेमानी होगा। इस तरह का प्रयोग मौजूदा राजनीति में ज्यादा हो रहा है। बीजेपी इस प्रयोग में सबसे आगे है। प्रदेश में वरिष्ठों को कनिष्ठों के दिशा निर्देश में करने का प्रयोग तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में खूब हुआ है। मध्यप्रदेश में कई केन्द्रीय मंत्री पहले विधायक चुनाव में भेजे गए, फिर कनिष्ठ के नेतृत्व में काम करने को कहा गया। तर्क दिया जा रहा है। मौका नए चेहरों को भी मिलना चाहिए नेतृत्व करने का। जो वरिष्ठ है वह जब नेतृत्व के लिए बैठाए गए थे, तब वह भी अनुभव नहीं रखते थे। उन्होंने खुद को साबित किया, यह भी करेंगे। सच तो यह है कि राज्यों को दिल्ली के इशारे पर चलाया जा रहा है। ‘यश मैन सीएम’ बैठा दिए गए हैं। राजनीतिक दलों के समीकरण मौका परस्ती वाले हैं। कभी भी कोई सरकार संकट में आ जाती है, बदल भी जाती है। हिमाचल में अंतर आत्मा के नाम पर राज्यसभा में क्रॉस वोटिंग हु
कहा जा रहा है यह काल बीजेपी का चरम उत्कर्ष काल है। उसके हर फैसले का हर आवाज सही ठहराएगी। पार्टी के अंदर भी फैसलों को स्वीकार करने वाली मजबूरी नेताओं के सामने है। साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी- केवल जो चाहेंगे वह पूरा हो जाएगा भाजपा के शीर्ष पर मान लिया गया है। भाजपा नेतृत्व ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उन चेहरों को साइट लाइन कर दिया, जिनके दम पर चुनाव में पार्टी गई थी। हालांकि पार्टी का मानना है भाजपा की हर जीत मोदी के चेहरे और काम पर हुई है। अबकी बार 400 पर का नारा भी मोदी के चेहरे और काम से हासिल किया जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश विकास के सोपान और विश्व में अपनी धाक जमा रहा है। अर्थ व्यवस्था का ग्राफ चढ़ रहा है। लेकिन, राजनीति जिस तरह से हो रही है, उसे लेकर तमाम राय हैं और तमाम सवाल हैं। लोकतंत्र के हर स्तंभ पर ऊंगली उठाई जा रही है। कहा जा रहा है सब कुछ मैनेज हो रहा है।
अंत में खुद पर उठते सवाल….
निष्पक्षता, निर्भिकता, अभिव्यक्ति की आजादी की बात मीडिया भले करे, लेकिन सच तो मीडिया जगत से जुड़े लोग बाखूबी जानते हैं। एक अखबार के री लाचिंग कार्यक्रम से जुड़ने का मौका मिला। लाचिंग में मीडिया पर विमर्श सुनने को भी मिला। विचारों को संतुलित करते वक्तव्य सामने आए। एक सीनियर पॉलिटिशियन और एक सीनियर जर्नलिस्ट की जुंबा मीडिया के मौजूदा हालात आए। एक खास विचारधारा से जुड़े पॉलिटिशियन ने मीडिया नहीं मीडिया कर्मियों की मजबूरी को रखा। दो टूक कहा- आजादी के पांच दशक बाद मीडिया पूंजीपतियों के हाथ में जाने की शुरूआत हो गई थी, अब तो हर मीडिया हाउस पूंजी के लिए उनके इशारे पर आगे बढ़ रहा है, जो पैसों को गणित तो समझ सकते हैं, लेकिन पत्रकारिता का गणित न समझते हुए उस पर पूरी पकड़ बनाए हुए हैं। पॉलिटिशियन ने कहा- सड़क बन रही है, कितनी लागत से बन रहीं, कितना लाभ होगा यह सूचना पहुंचाने के लिए सरकार के प्रवक्ता हैं। मीडिया को यह सूचना पहुंचाना चाहिए, जो सड़क बन रहीं उस पर किन-किन प्रभावी लोगों की जमीन हैं। जिन तक सड़क बनने से जमीन की कीमत बढ़ने की सूचना पहले पहुंच गई थी।