आदर्श मार्ग नहीं बन सका “आइडल”
अजय तिवारी
——-
ताजा जनप्रतिनिधि और फेस बुक
– आदर्श मार्ग तो आइडल नहीं बन सका, लेकिन उसके लिए कारोबार खोने वाले विस्थापित दुकानदार अब तक ठिकाने की बाट जोह रहे हैं। हर दरवाजे पर दस्तख दी, सुनवाई नहीं हुई। नया दरबार बना तो उसके पास भी पहुंच गए अर्जी लेकर। सुनवाई होगी या नहीं यह तो वह भी नहीं कह सकते, क्योंकि बड़े दरबार पर सब कुछ निर्भर है। चलो जो भी हो फोटो तो क्लिक करा लिया। फेस बुक पर पोस्ट भी कर दिया। दुबारा ताजा जनप्रतिनिधि जो बने हैं।
दरबार को सब पता है
फिर बड़े दरबार में पहुंच रहे हैं, ब्रिज की मांग को लेकर। दिलचस्प बात है, जो ज्ञापन सौंपा जा रहा है, उसका ए से लेकर जेड तक सब पता है माननीय को। ब्रिज को लेकर कागजों की कितनी रफ्तार है और कब तक वह जमीन पर उतरेगी, लेकिन एक पंचायत ने अभियान का ऐलान किया है, दूसरी कैसे खामोश बैठ सकती है। शायद, मांग को लेकर एकजुटता के साथ आगे बढ़ने की बात थी, लेकिन दो किनारे की तरक कायम रहने की कसम खाई है।
मेहरबानी नहीं करते जनाब!
वो समझते है होशयार हैं, उन्हें क्या पता जिसे वह मेहरबानी समझते हैं। उसके एवज में कितना समर्पण कर देते हैं। हर दिन हजारों कीमत की पब्लिसिटी करवाते हैं। खबर के लिए नमस्कार, चमत्कार करते हैं, लेकिन जब वक्त देने का होता है तो फोन नहीं उठाते। कुछ समर्पण के एवज में अपेक्षा भी रखते हैं, उनकी अंदर की खबरें बाहर न आए इसका भी दबाव बनाते हैं, चलो सालों से चल रहा है चलने दो चलता रहेगा।
—-
बहुत कुछ घटेगा संतनगर में
बहुत कुछ घट रहा है, बहुत कुछ घटेगा, जो घटा है वह जग जाहिर हो रहा है। कलेवर कॉमर्शियल हो गया है, टैग सोशल सर्विस का लगा हुआ है, ख्याति भी है। गजब है, कोई भी खुद को समाजसेवी की पदवी दे देता है… कोई भी खुद बुद्धिजीव बन जाता है तो कोई शिक्षाविद। बड़े-बड़े काम करने वालों के नामों को यह पहचान मिलती थी। संतनगर में चुनाव में खेत रहे नेताओं ने पूर्व प्रत्याशी को भी पद का नाम दे दिया है।