सिंधी समाज.. सिंधु नदी और आडवाणी

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पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने के ऐलान से देश के समूचे सिंधी समाज में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई है। आडवाणी ने सिंधी समाज में राष्ट्र बोध, देश प्रेम जागते हुए उन्हें सांस्कृतिक एकता के लिए भी प्रेरित किया। उनमें राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना से भावनात्मक रूप से जोड़ने का पूरा प्रयास किया, जिसके फल स्वरुप राष्ट्रगान में सिंध शब्द के होने को सार्थकता भी मिली है।
सिंधी बंधु भावनात्मक रूप से तो सिंधु नदी से जुड़े ही थे, लेकिन भारत के लद्दाख और जम्मू कश्मीर प्रांत से पुण्य सलिला सिंधु नदी के प्रवाह की जानकारी मिलने के बाद सिंधु दर्शन यात्रा का विधिवत शुभारंभ हुआ। यह महती कार्य आडवाणी ने प्रारंभ करवाया जो अनवरत रूप से आज भी जारी है। यह आडवाणी का सिंधी समाज और राष्ट्र को अहम योगदान है। इसके अलावा राम जी की अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए किए गए संघर्ष और प्राप्त सफलता से उन्होंने वैश्विक स्तर पर हिंदू अनुयायियों का हृदय जीत लिया है।


मध्य प्रदेश के इतिहासकार से
मिली थी तथ्यात्मक जानकारी

बता दे कि सिंध में मुन जो दडो की सिंधु सभ्यता और हिस्टोरिकल ज्योग्राफी ऑफ़ इंडिया के अध्येता मुंगेली (छत्तीसगढ़) से शिक्षित और बाद में सागर विवि में प्रोफेसर हुए प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता प्रो एस एन मनवाणी ने आडवाणी को सिंधु नदी के प्रवाह क्षेत्र और सांस्कृतिक विशेषताओं का विवरण दिया।उन्होंने वर्ष 1985 में सिंधु नदी के भारत से प्रवाह के बारे में पहले पहल तथ्य परक जानकारी दस्तावेजों के साथ आडवाणी को दी थी। लद्दाख क्षेत्र में सिंधु को सिंधु नहीं बल्कि इंडस के नाम से सेना के जवान पुकारते रहे हैं। भारत वासियों के संज्ञान में यह तथ्य आने के पश्चात भारत सरकार द्वारा पर्यटन विकास और सांस्कृतिक एकता की दृष्टि से सिंधु दर्शन के वार्षिक आयोजन को हरी झंडी मिली, इसमें विदेश से भी श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में जून माह में लेह पहुंचते हैं। आडवाणी जी के प्रयासों से आज लद्दाख एक तीर्थ स्थल, पर्यटन स्थल और पृथक प्रांत भी बन सका है। इस तरह लेह में सिंधु नदी पर तट के भव्य घाट के निर्माण और तीर्थ स्थल के विकास का प्रकल्प पूरा करवाकर आडवाणी जी ने सिंधी समाज के लिए अतुलनीय योगदान दिया है।

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