संतनगर की पत्रकारिता का गजब सलीका, गजब तरीका
टारगेट की खातिर तारीफ और निपटाने की मजबूरी…. छोटे नेताओं पर वार, बड़े नेताओं पर लिखने का साहस नहीं… विज्ञप्ति आत्मा, छापने की शर्त टारगेट पर खरा उतरो… अब बीडीसी न्यूज पर मीडिया की बात मीडिया के साथ हर सप्ताह.. इसमें संतनगर की पत्रकारिता पर आम आदमी के व्यूह का प्रकाशन भी किया जाएगा…
खरी-खरी
भोपाल। अजय तिवारी
संतनगर की पत्रकारिता का अपना सलीका है और अपना तरीका। समाचारों के लिफाफे अखबारी दफ्तरों तक पहुंचाने के साथ पत्रकारिता की शुरूआत हुई थी। बदलाव दर बदलाव के चलते अब समाचार न्यूज पेपर की मेल आईडी पर पहुंच रहे हैं। बहुत हद तक यहां का जर्नलिज्म प्रेस नोट की तासिर वाला रहा है। कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर अखबार नवीस विज्ञापन टारगेट पर पत्रकारिता कर रहे हैं। लाजमी है ऐसी पत्रकारिता में विज्ञापन पार्टी का ख्याल पूरी शिद्दत से रखना मजबूरी है। इसी लिए मामूली खबरों को चार कॉलम देखना आम है। यदि कोई सियासतदान आलोचना के केन्द्र में आता है, तो उसमें निष्पक्षता और पत्रकारिता का धर्म नहीं विज्ञापन टारगेट होता है। इसलिए संतनगर के एडवर्टाइ वाले सीजन के पहले या बाद में धारदारू खबरें पन्नों पर नजर आती हैं। अखबार पर नजर डालने वालों के लिए कतरनें सोशल मीडिया वायरल होती हैं।
घटते श्रमजीवी पत्रकार
यह दौर था जब संतनगर के लिए अलग से पेज, पुलआउट अखबारों की जरूरत बन गए थे, लेकिन मामूली बदलाव के साथ एक ही खबर को बार-बार परोसे जाने से वह खत्म हो गए। हालांकि ऐसा होने पर अखबार का कामर्शियल पक्ष भी रहा। कोविड के बाद घटती पाठक संख्या से नामी अखबारों के उपनगरीय दफ्तरों पर ताले डले गए। बिना वेतन के काम करने के हालात भी हैं, जो कुछ हद तक विज्ञापन में गुणा भाग करने को पत्रकारों को मजबूर कर रहा है। बड़े अखबारों में ही वेतन पाकर कुछ श्रमजीवी पत्रकार खुद को कह सकते हैं। पेज में खबर का आकार-प्रकार खबर की हैसियत से ज्यादातर मौका पर न्याय करने वाला नहीं होता।
दबाव की पत्रकारिता
तत्काल खबरों के प्लेटफार्म न्यूज वेबसाइट, यू ट्यूब चैनल की लिंक वाली जर्नलिज्म का दौर आया है, लेकिन वह भी बहुत हद तक विज्ञप्ति के फेर है, इसकी वजह ज्यादा वेबसाइट और यू ट्यूब न्यूज चैनल व्यक्ति केन्द्रित हैं, जो अपना और साइट की खर्चा निकाल रहे हैं। कुछ हद तक दबाव की पत्रकारिता भी हो रही है, जो खबर में लिए मैदानी सक्रियता में तो नजर आती है, लेकिन स्क्रीन पर तभी आती है, जो दबाव से धन नहीं निकलता।
चलते-चलते…
संतनगर की पत्रकारिता में शुरू से केवल पत्रकारिता वाला मिजाज नहीं रहा। मूल काम के साथ पत्रकारिता होती रही है और हो रही है। दो काम के साथ कई पत्रकार वरिष्ठ समाजसेवी खुद को घोषित कर चुके हैं। इस का इतना ही अगली बार इससे आगे…
बीडीसी न्यूज, भोपाल