सिंधी समाज अपने बूते कर सकता है मातृभाषा की सेवा

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अजय तिवारी. भोपाल डॉट कॉम
21 फरवरी यानी अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस. यह दिन सभी अपनी मातृभाषा के संवर्द्धन की चिंता करते हें। भाषा के विकास के लिए सरकारी और सामाजिक प्रयासों पर मंथन करते हैं। बात यहां सिंधी भाषियों की करेंगे। भारत-पाकिस्तान बंटवार के बाद बहुतायत संख्या में हिन्दू सिंधियों को पाक से पलायन करना पड़ा था। हिन्दुस्तान में बिखराव के साथ बसाहट हुई। अलग प्रांत न मिलने से सिंधी संस्कृति, भाषा, साहित्य और समग्र सिंधियत के संरक्षण के लिए मौका नहीं मिला सिंधी समाज के लोगों को। दो जून की रोटी का संघर्ष दशकों तक किया। अपने पुरूषार्थ से आज वह सब कुछ हासिल कर लिया है, जो जीवन में अपेक्षित था। खुशी की बात यह है कि आज सिंधी समाज देश की अर्थ व्यवस्था में भी अहम योगदान दे रहा है।


सिंधी समाज की टीस


भाषा के विकास पर सरकारी संरक्षण की अपेक्षा सिंधी समाज को है। वह मानता है कि घरों में बच्चों से मातृभाषा में बातचीत न करने, सिंधी पढ़कर रोजगार के अवसर न होने से मौजूदा यूवा पीढ़ी हर दिन भाषा से दूर होती जा रही है। हालात यह है कि देश के जिस हिस्से में समाज के लोग रहते हैं और कारोबार करते हैं, वहां की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। वह वहां की संस्कृति में भी घुल मिल गए हैं।


घट रहे सिंधी पढ़ने वाले


हर दिन के साथ स्कूलों में सिंधी पढ़ने वाले बच्चों की संख्या देशभर में घट रही है। मध्यप्रदेश में स्थिति यह है कि कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाली किताबें भी नहीं हैं। मप्र सिंधी अकादमी ने खुद को सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित कर लिया है। गर्मी की छुटि्टयों में सिंधी के 15 दिन के शिविर लगाकर इति श्री मान ली जाती है।


संतनगर में हालात


सिंधी बाहुल्य राजधानी के संत हिरदाराम नगर (बैरागढ़) में बड़े शिक्षण संस्थान सिंधी मैंनेजमेंट चला रहे हैं, लेकिन उनमें सिंधी पढ़ाने की चिंता है। सामाजिक स्तर पर भी संस्थाएं मातृभाषा के विकास की बातें करती हैं, लेकिन प्रयास मुंह जमा हैं, जमीन पर नजर नहीं आते।

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