इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं….
चर्चा ए खास … बिना विस्थापन संतनगर के विकास के रोडमैप पर
अजय तिवारी
चर्चा हो रही थी…
संतनगर का विकास चाहने, लेकिन विकास से पहले विस्थापन न होने की चिंता रखने वाले से। बात चली स्टेशन रोड पर ओवर ब्रिज की.. शुरूआत हुई ब्रिज बनने से प्रभावित होने वाले दुकानदारों की चिंता के साथ। वह बोले- किसी भी समस्या का हल किसी की रोजी-रोटी की शर्त पर होना बेमानी है। बेशक दुकानों को तोड़ा जाए, लेकिन पहले उनका विस्थापन होना चाहिए, जो ब्रिज बनने की मांग से सहम उठते हैं। बिना विस्थापन विकास का रोडमैप धोखा है। यह कहना ब्रिज बनने के बाद ब्रिज के नीचे दुकानें बनाकर विस्थापन करेंगे, यह तो और बड़ा फरेब। ब्रिज कोई दो-तीन महीने में तो बनेगा, तब तक वह दुकानदार क्या करेंगे, जिनकी दुकानें टूटेंगी। ब्रिज बनने के बाद कारोबार की तो बात कर ही नहीं रहे हैं।
कुटिया के पास से अंडर ब्रिज…
सामाजिक संस्थाओं की उस मांग पर बात हुई, जिसमें संत हिरदारामजी की कुटिया के पास से अंडर ब्रिज की मांग की जा रही है। सवाल उठा क्यों सेवा के तीर्थ की शांति को भंग करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अंडर ब्रिज बनेगा तो वाहनों की आवाजाही होना तय है। मतलब एक समस्या को दूसरी जगह शिफ्ट करने की तैयारी। समस्याओं को लेकर ज्ञापनों के सिलसिले के साथ बात आगे बढ़ रही थी। कितने ज्ञापन, कितनी मांगें पूरी हुई- यह चर्चा तर्क और कुतर्कों में उलझ जाएगी। सवाल यह है कि ज्ञापन किसे दिए जा रहे हैं, जो हर समस्या से बाकिफ है और उसका निदान उसकी ड्यूटी है मेहरबानी नहीं।
बात आगे बढ़ी…
मल्टी लेबल पार्किंग का जिक्र हुआ। सवाल उठा, पार्किंग बनने से कौन सी यातायात की समस्या का हल हुआ। मेन रोड, बाजार की हर सड़क पर आधी सड़क वाहनों से घिरी रहती है। हां, इतना जरूर हुआ पुरानी सब्जी मंडी हटी तो करोड़ों का कारोबार करने वालों को आलीशान दुकानें मिल गईं। मंडी से जिन सब्जी वालों को हटाया गया, वह आज किस स्थिति में हैं, कहने की जरूरत नहीं। न तो कारोबार चल रहा है, सब्जी लेने न आने वालों के चलते शहर की हर सड़क सब्जी मंडी बन गई है। जबकि पुरानी सब्जी मंडी के आसपास से केवल ठेलों को व्यवस्थित करने की जरूरत थी। नई सब्जी मंडी में सुविधाओं के वादे आज तक धोखा बने हुए हैं।
बीआरटीएस, क्यों रो रहे..
जब बीआरटीएस बन रहा तब तो कुछ नहीं कर पाए। अब समस्या के लिए रोना ठीक वैसा है, जैसा पिता का इलाज कराने सभी भाई एक-दूसरे को मुंह देखते रहे, जब पिता चले गए तो रो रहे हैं, हम कुछ नहीं कर पाए। वो तो गनीमत रही उस वक्त तय चौड़ाई कम हो गई, नहीं तो मेन रोड की कई दुकानें आधी हो जातीं। कहा जाता था- कॉरिडोर बनने से यातायात सुलभ हो जाएगा। हालात और खराब हो गए कॉरिडोर चंद बसों के लिए रह गया। हालांकि अब अपवाद शुरू हो गया है। रोड के दोनों और कारों का काफिला हिरदाराम मार्केट से कालका चौराहे तक खड़ा रहता है।
बातचीत पर विराम दिवाकर राही की पंक्तियों के साथ-
इस दौर-ए-तरक़्क़ी के अंदाज़ निराले हैं
ज़ेहनों में अँधेरे हैं सड़कों पे उजाले हैं