सबके हृदय के राम थे “हिरदाराम साहिब”
महाप्रयाण दिवस 21 दिसंबर 2009
अजय तिवारी
बहुत अंधेरी और सन्नाटे भरी थी वह रात… उस रात संतनगर में सबके “हृदय के राम” स्वामी संत हिरदारामजी” के ब्रह्मलीन होने की खबर हवा में बह रही थी। 20 दिसंबर 2006 तारीख थी, समय था रात 10 बजे। बैरागढ़ (संत हिरदाराम नगर) स्तब्ध था। हर आंख नम थी। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था महामानव के दर्शन अब नहीं हो सकेंगे। मानव सेवा की राह दिखाने वाला प्रभु की राह निकल गया है। कुटिया की ओर कदम बढ़ कई कदम रहे थे, यह प्रार्थना करते हुए कि संतजी ब्रह्मलीन नहीं हुए हैं। भीड़ जमा होने लगी थी कुटिया के सामने। कुटिया से निकलकर एक अनुयायी ने कहा, अब हमारे हृदय के राम परलोक चले गए हैं।
दूसरे दिन 21 दिसंबर की सुबह हुई सेवा के सूर्य (श्रद्धेय हिरदारामजी) की विदाई की साक्षी बनने। कभी बैरागढ़ इतना खामोश नहीं देखा था। कुटिया पर जनसैलाब उमड़ा हुआ था। क्या आम, क्या खास सब गम में डूबे थे, संतनगर के परमात्मा के जाने से। कुटिया बस यही कह रही थी- अब नहीं मिलेगी कहीं नयन, संतजी की व्यर्थ न आस करो। हिरदाराम साहिब सचमुच चले गए, भोले मन पर विश्वास करो। सुबह से सांझा ढलने तक समाधि की प्रक्रिया चलती रही। पश्चिमांचल में अस्त होते सूर्य ने पंचतत्व में विलीन होते संतजी को श्रद्धांजलि दी।
संतजी का अहसास है कुटिया में
सेवा के वटवृक्ष को लेकर तमाम सवाल हर शख्स के मन में उठ रहे थे सेवा प्रकल्पों का क्या होगा, लेकिन वह सारे हर सवाल समय के साथ उत्तर में तब्दील होते गए। कुटिया के माली की बगिया के हर पौधे को अनुयायियों ने पूरी शिद्दत से पानी दिया। बच्चे, बूढ़े और बीमारों की सेवा में परमात्मा की पूजा की। समाजसेवियों के सेवा तीर्थ “सेवा संकल्प धाम” में आज भी संतजी के होने का अहसास होता है और कहता है मिश्री का प्रसाद लो, दूसरों की जीवन में मिश्री घोलो। मानव होकर मानवता का फर्ज निभाओ। संतजी के महाप्रयाण दिवस पर “नमन”।
भोपाल डॉट कॉम विशेष