प्रिंसिपल के लिए मास्टर डिग्री, डायरेक्टर जो चाहे बन जाए
भोपाल डॉट कॉम शुरू कर रहा विमर्श.. निजी स्कूलों के डायरेक्टर के लिए योग्यता क्यों जरूरी नहीं… जो चलाते हैं, वह स्कूल वह कितने योग्य होना चाहिए। शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों से हर सप्ताह करेंगे चर्चा
अजय तिवारी
किसी विद्यालय का प्रिंसिपल होने के लिए एज्युकेशन में डिग्री के अलावा स्कूल-अध्यापन विषय में मास्टर डिग्री होनी चाहिए। साथ ही स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में कम से कम 5 साल का अनुभव होना चाहिए, लेकिन प्राइवेट स्कूल का डायरेक्टर बनने के लिए योग्यता का मापदंड पैसा लगाना या प्रभावशाली होना शर्त है। डायरेक्टर यानी मास्टर डिग्री लेने वालों को बताने वाला आपका यह करना है, नहीं करना है।
ज्यादातर प्राइवेट स्कूल का संचालन रजिस्ट्रार फर्म सोसायटी से पंजीकृत संस्थाएं कर रही हैं, सोसायटी रजिस्ट्रेशन के लिए पदाधिकारियों की योग्यता का कोई मापदंड नहीं है। ज्यादातर संस्थाओं में अपने-अपनो के नाम होते हैं, जो ‘शिक्षा के व्यावसायीकरण’ का उद्देश्य को पूरा करते हैं। कम से कम परिश्रमिक पर शिक्षक-शिक्षिकाओं की भर्ती करते हैं। स्कूल संचालन में कहां से क्या कमाया जा सकता है, इस पर फोकस होता है। बाकी काम कम वेतनभोगियों के जिम्मे होता है। फीस वसूली में कोई कसर न छोड़ते हुए, यूनिफार्म में, किताबों में ‘कमीशन’ सीधे कमायी का जरियो होता है।
पैसा था डायरेक्टर बन गए
चलो खुद का पैसा लगाकर स्कूल खोलने वाले यह करें तो चलता है, लेकिन जरूरतमंदों को शिक्षा के नाम पर जुटाए पैसे से इंफास्ट्रेक्चर खड़ा करने वाली सोसायटियां ‘व्यावसायीकरण’ की राह पकड़ती हैं, तो चिंता होना लाजमी है। क्योंकि समय के साथ इन सोसायटियों के संस्था आम आदमी से महंगा होने के कारण दूर हो जाते हैं और धनाढ्य लोगों के बच्चों तक सीमित हो जाते हैं, हो क्या जाते हैं हो रहे हैं।
पारिवारवाद स्कूलों में
शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। दुर्भाग्य से यह शिक्षा का सिद्धांत पूरा करने वाले कतिपय वह हैं, जो खुद योग्यता नहीं रखते। अपने दबाव और प्रभाव या अपने तौर तरीकों से स्कूल नहीं दुकान के सेठ बन जाते हैं।
शुरू कर रहे सीरीज
शिक्षा देना एक पवित्र कर्म है और गुरूकुल से शुरू हुई, गुरू-शिष्य परंपरा की राह पर चलने वाले महान थे, महान हैं। गुरूकुलों के मुखिया ज्ञानवान गुरू होते थे, वे शिष्यों को ज्ञान देते थे, लेकिन जब गुरूकुल से प्राइवेट स्कूल और विद्यार्थी से स्टूडेंट्स बनने की प्रक्रिया में परिवार वाद आया, सेठ के बाद गद्दी पर सेठ का बेटा बैठेगा। योग्य है या नहीं इससे कुछ लेना-देना नहीं है। प्राइवेट स्कूल चलाने के लिए व्यवस्था ने हर स्तर पर नियम बनाए, लेकिन स्कूल चलाने वाले डायरेक्टर की योग्यता के मापदंड कब बनेंगे.. सिस्टम बना पाएगा या नहीं, भोपाल डॉट कॉम ‘स्कूल डायरेक्टर योग्यता’ पर सीरीज शुरू करेगा, जिसमें बुद्धिजीवी शिक्षाविदों के विर्मश को रखा जाएगा।