भोपाल

विश्व गौरैया दिवस: घटती गौरैया की संख्या पर चिंता, पर्यावरण संरक्षण का संकल्प

‘ A Tribute to Nature’s Tiny Messangers’ की थीम पर हुए कार्यक्रम

भोपाल: BDC NEWS

गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों की घटती संख्या से पर्यावरण को हो रहे नुकसान और इससे उत्पन्न पर्यावरणीय असंतुलन से मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभावों के प्रति जागरूकता को बढ़ाने और इन पक्षियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से गुरुवार को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। इस वर्ष ये दिवस ‘ A Tribute to Nature’s Tiny Messangers‘ की थीम पर मनाया गया। जिसमें इन पक्षियों की घटती संख्या के कारण पर्यावरण को निरंतर हो रहे नुकसानों पर जानकारी दी गई। साथ ही इनके संरक्षण और संख्या को बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की गई।

इस अवसर पर स्वास्थ्य संस्थाओं में पर्यावरण असंतुलन को रोकने के प्रयासों को व्यक्तिगत स्तर पर बल दिए जाने के लिए परिचर्चा और शपथ कार्यक्रम आयोजित किए गए। लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा अन्य सभी विभागों के समन्वित सहयोग से पर्यावरणीय असंतुलन को रोकने की दिशा में कई स्तरों पर काम किया जा रहा है। विगत दिनों मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय द्वारा अंतर विभागीय कार्यशाला भी आयोजित की गई थी जिसमें मानव स्वास्थ्य के साथ साथ पशु पक्षियों पर होने वाले पर्यावरणीय असंतुलन के प्रभावों पर चर्चा की गई थी।

एक छोटी सी चिड़िया है गौरैया

गौरैया, जिसे अंग्रेजी में ‘स्पैरो’ कहा जाता है, एक छोटी सी चिड़िया है, जो हमारे आस-पास के वातावरण में रहती है। यह चिड़िया न केवल सुंदर और प्यारी होती है, बल्कि प्राकृतिक संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हम सभी ने बचपन में इस चिड़िया को अपने घरों के आंगन या गली-मोहल्लों में देखा है। परंतु, बदलते पर्यावरण और मानवीय गतिविधियों के कारण इनका अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। गौरैया का अस्तित्व हमारे सांस्कृतिक और पारंपरिक जीवन में भी गहरा संबंध रखता है। भारत में इसे अक्सर घरों में शुभ संकेत के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह घर के वातावरण को हल्का और खुशहाल बनाती है।

गौरैया की लगातार घट रही है संख्या

गौरैया की घटती हुई संख्या का प्रमुख कारण उसके प्राकृतिक आवास का नष्ट होना है। शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण पेड़-पौधे, बाग-बगीचे और खुले स्थान धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। साथ ही प्रदूषण और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग ने गौरैया के जीवन को संकट में डाल दिया है। इसके अलावा, अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण भी इन पक्षियों के प्राकृतिक व्यवहार को प्रभावित करता है। गौरैया छोटे-छोटे कीड़े, अनाज और रसोई के बचे हुए खाने को खाती हैं। लेकिन आधुनिक खेती में रासायनिक कीटनाशकों के आगमन के साथ, कीटों की आबादी कम हो गई है।खेती में कीटनाशकों के इस्तेमाल ने कीटों की आबादी को कम कर दिया है, जिससे गौरैया के लिए भोजन की उपलब्धता प्रभावित हुई है। वाई-फाई और मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से गौरैया के प्रजनन स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। विद्युत चुम्बकीय तरंगें उनकी नेविगेशन क्षमता और भोजन खोजने की क्षमता को बाधित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आबादी में गिरावट आती है। जैसे-जैसे शहरी क्षेत्र बढ़ रहे हैं, हरे-भरे क्षेत्र कंक्रीट की इमारतों, सड़कों और कांच के टावरों में तब्दील होते जा रहे हैं। जिससे गौरैया के पास घोंसले बनाने और भोजन प्राप्त करने के लिए कम जगह बची है। वायु प्रदूषण उनकी सांस लेने में बाधा डालता है,जबकि ध्वनि प्रदूषण संचार और साथी खोजने को जटिल बनाता है।

फसलों को नुकसान से बचाती है गौरैया

डॉ. प्रभाकर तिवारी, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भोपाल

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विश्व गौरैया दिवस पर प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए गौरैया के संरक्षण के लिए प्रयास करने का आह्वान किया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि पर्यावरण और आधुनिक तकनीक के दौर में मासूम जीवों का अस्तित्व संकट में न आए, इसके लिए वृक्ष लगाने, घोंसलें बनाने और गौरैया तथा अन्य पक्षियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने-अपने स्तर पर सभी को प्रयास करने की आवश्यकता है। घर में गौरैया सहित अन्य पक्षियों के लिए घोंसला और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना पुण्य का कार्य है, इस दिशा में सभी को पहल करनी चाहिए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि घर-आंगन चहकाने वाली गौरैया का संरक्षण हम सब का दायित्व है।

भोपाल डॉट कॉम, डेस्क

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