संतनगर की चौपाल
- रितेश नाथानी
अंदर हां, हां करने वाले ने अपनो से सुनी खरी-खरी
बात करने तो व्यापारियों की गए थे, लेकिन माननीय के साथ क्या बैठे सुर ही बदल गए। हां में हां मिलाने लगे। उस वक्त तो दूसरे व्यापारी चुप रहे, लेकिन बाहर निकलते ही आपे से बाहर हो गए और यस मेन जो थे, उन्हे आड़े हाथों ले लिया। कहा- आदरणीय नंबर बढ़ाने के बहुत से मौके होते हैं, इस समय हां, हां क्यों कर रहे थे। आप किस हैसियत से हां में हां मिला रहे थे, तारीफ कर रहे थे। हमारे पक्ष में नहीं बोलना था तो न बोलते चुप तो रहते। हमारा व्यापार चौपट हो रहा है, आप हैं कि तारीफों के पुल बांध रहे हैं। यह संवाद पूर्व और वर्तमान में था, इसलिए चर्चा भी खूब हो रही है। आगे देखते हैं यस मेन में सुधार आता है या नहीं?
देने गए थे ज्ञापन रेल मंत्री को देना पड़ा स्टेशन मास्टर को
नगर सरकार में ‘आरदणीय’मंत्री हैं। शहर उनके विभाग से क्या खुश होगा जब उनका गृह क्षेत्र के लोग ही खुश नहीं हैं। उनके शहर की लाइटें बंद हैं, कह रहे है ठीक जाएंगी। सड़क की समस्याएं चुनाव आचार संहिता लगने से पहले बनवा देंगे। एक और वाक्या है, हाल ही में चुनाव के काम से भोपाल आए रेल मंत्री का स्वागत करने गए तो वंदेभारत के स्टॉपेज की मांग का ज्ञापन भी साथ लेकर पहुंचे। रेल मंत्री ने कहा यह ज्ञापन आप स्टेशन मास्टर को सौंप देना। मेरे पास वॉट्सअप कर देना। सौंपा था रेल मंत्री को लेकिन बाद में मंत्रीजी के अनुसार स्टेशन मास्टर को थमाकर मीडिया में न्यूज भिजवा दी। कहीं यह नहीं बताया कि रेल मंत्रीजी को देने को गए थे, स्टेशन मास्टर को देना पड़ा ज्ञापन।
खर्च की बात जनरल सेकट्ररी करेंगे, चंदा हम देख लेंगे
संतनगर में चालीहा चल रहा है। समृद्धि की कामना के लिए पल्लव किया जा रहा है। आयोजन समिति के अध्यक्ष ने हर काम के लिए जनरल सेक्ट्ररी को मुकर्रर कर दिया है, जो कुछ करना है जनरल सेक्ट्ररी करेंगे। खर्चे का जिम्मा भी जनरल सेक्ट्ररी पर है। लेकिन, सहयोग राशि की जिम्मा लेने वालों ने ले रखा है। इसलिए आयोजन की हर विज्ञप्ति में तीन से चार लोग जानकारी दे रहे है। एक बताता है क्या आयोजन होगा, दूसरा आगे बढ़ता है, तीसरा उसके आगे का ब्योरा देता है। एक व्यक्ति यह काम कर सकता है, लेकिन सबके नाम छपना है, छपास सबको चाहिए, इसलिए एक विज्ञप्ति कई नाम चल रहा है।
विरोध करने में अकेली सक्रियता कांग्रेस के एकला चलो नेताजी
ब्रिज का विरोध कांग्रेस कर रही है, लेकिन एकला चलो वाले नेताजी अलग से अपना विराध दर्ज करने सोशल मीडिया पर सक्रियता दिखा रहे है। स्थानीय संगठन भी अपने विरोध में उनका नाम नहीं दे रहा है। नेताजी एक बार खेत रहे, दूसरी बार टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं, इसलिए लोकल इश्यू पर अपनी बात रखकर अपनी सक्रियता को तो साबित करना है। टिकट मिले या न मिले लेकिन ने पूर्व उम्मीदवार का टैग तो अपने नाम के आगे लगा लिया है। विधायक नहीं बन सके तो क्या, कम से कम प्रत्याशी तो बन गए, यही काफी है। कुछ महीने की कांग्रेस सरकार में हार कभी वे विधायक जैसे रूतबे के साथ सामने आ चुके हैं।
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