चालीहा साहब : 40 दिनी व्रत  साधना ….. चौदह सौ साल पुरानी परंपरा है चालीहा  

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हिरदाराम नगर। BDC NEWS
नवरात्र की तरह कठोर व्रत साधना का पर्व झूलेलाल चालीहा साहिब 14 सौ साल पुरानी सिंध की परंपरा है, सिंधु नदी के तट पर संत-महात्माओं ने यह परंपरा शुरू की थी। भगवान झूलेलाल की साधना के इस पर्व का सिंधी समाज में खासा महत्व है। लगातार 40 दिन तक कठिन व्रत साधना कर समाज के लोग मानव कल्याण और कोरोना से मुक्ति के लिए पल्लव करेंगे। यह पर्व 16 जुलाई से 24 अगस्त तक मनाया जाएगा।
जल ज्योति के अवतार भगवान झूलेलालजी की आराधना सिंधी समाज संन्यासी की तरह संयमित जीवन जीकर करता है। चालीस दिन तक अखंड जोत (बहिराणा) जलाकर व्रत रखा जाता है। विष्णु सूर्य के अवतार भगवान झूलेलाल की विशेष अर्चना की जाती है। खुद की भावना से ऊपर उठकर मानव कल्याण एवं खुशहाली के लिए पल्लव करते हैं। व्रतधारी पर्व को छेज कर उत्सवी बनाते हैं। जहां भी सिंधी समाज के लोग हैं, साल दर साल बढ़ता जा रहा है। व्रत साधना में भक्ति, छेज में संस्कृति, पल्लव में सभ्यता, इष्ट देव की पूजा में परंपरा देखने को मिलती है। चालीहा सभी धर्मों के प्रति सम्मान की प्रेरणा भी देता है। बिना किसी भेदभाव के सभी के कल्याण के लिए झूलेलाल से प्रार्थना की जाती है।
इस तरह होती है साधना
पर्व के साधना का तरीका नवरात्र की तरह है। साल में दो बार चालीहा मनाया जाता है। एक 16 जुलाई से 24 अगस्त तक तथा दूसरा सिंधी माह नाहेरी के बाद पहले चन्द्र दिवस से मनाया जाता है। जो अंग्रेजी कलेंडर में नवंबर-दिसंबर में पढ़ता है। इसमें माह में बदलाव आता रहता है। चालीहा में दिनचर्या बदल जाती है। सुबह से शाम तक जल ज्योति की पूजा में समय व्यतीत होता है। व्रतधारी नंगे पैर चलते हैं, व्यसन से दूरिया बनाकर रखी जाती है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी संन्यासी जीवन का पालन किया जाता है। जमीन पर सोया जाता है, ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। काले और गहरे रंग के कपड़े व्रतधारी नहीं पहनते हैं। मन विचारों में शुद्धता खास ख्याल रखा जाता है। भौतिकवादी जीवन शैली से चालीस दिन दूर रहने के अवसर को ही चालीहा को माना जाता है।

पर्व की मान्यता
सिंध की राजधानी थटोनगर जो बढ़ा व्यापारिक केन्द्र था, वहां मिरख बादशाह के अत्याचार से मुक्ति के लिए सिंधु नदी के किनारे लोगों ने जल देव की चालीस दिनी उपासना की थी। उपासना और प्रार्थना के सातवें दिन अत्याचार से मुक्ति के लिए अवतार की आकाशवाणी हुई थी। आकाशवाणी के बाद भी लोगों ने व्रत जारी रखा।  आकाशवाणी के अनुसार झूलेलालजी ने सिंध के नसरपुर गांव में भाई रतनराय के घर मानव के रूप में जन्म लिया। उन्हें महल में बुलाकर गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई, पर झूलेलालजी के चमत्कार से बादशाह शरणागत हो गया। उसने महल में ही जिंदहपीर मंदिर बनवाया। सिंध में आज भी यह जगह हिन्दू- मुस्लिमों की समान आस्था का केन्द्र है।

संतनगर में 1988 से मनाया जा रहा

चालीहा पर्व मना रहे सिंधी समाज के लोगों ने बताया कि वैसे तो समाज के लोग जहां भी रहते हैं वहां चालीहा महोत्सव मनाया जाता है। संत हिरदाराम नगर, भोपाल, उल्लास नगर कैंप, अहमदाबाद, दिल्ली, बड़ोदरा, इंदौर, ग्वालियर, इटारसी में बड़े पैमाने पर पर्व मनाया जाता है। बैरागढ़ में वर्ष 19808 में पूज्य झूलेलाल चालीहा साहिब उत्सव समिति ने इसकी शुरूआत की। अब झूलेलाल चालीहा उत्सव समिति भी पर्व मनाती है।
फोटो- झूलेलालजी।

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