जरा हटकेमेरी कलम

एक नगर है…. अब वट वृक्ष के नीचे लगने लगी है हाट

समझ सको तो समझो बात है खरी…. फैसला करने वाले खुद दूसरी चौखट पर

अजय तिवारी
वटवृक्ष का धर्म रोग निवारण है। उसके पत्ते, फल और छाल बीमारियों को दूर करने में सहायक होते हैं। वटवृक्ष की पत्तियां ऑक्सीजन देती हैं। वृक्ष दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है। पत्तों से निकलने वाला दूध मोच और सूजन में काम आता है। खुली चोट पेड़ का दूध उपचार में काम आताहै।
एक नगर है … उसके वट वृक्ष का दर्द हर उस शख्स को परेशान कर रहा है, जो वृक्ष की छाया की कामना करता है। वृक्ष की सघनता के लिए परमात्मा से प्रार्थना करता है। वृक्ष के नीचे बैठकर आंसू पौंछने का धर्म निभाने वालों की मंडली अब एक साथ नहीं आती। अपना लौटा, अपना पानी अर्पित कर चलते बने का सिलसिला उसके मालियो का शुरू हो गया है। वैसे सच तो यह कि वट वृक्ष नगर में अवतारी पुरूष की साधना से रोपा पौधा है, जिसे दूसरों के लिए करने की भावना ने बढ़ा किया है। छायादार वृक्ष बनाने में न जाने कितने की सेवाभावना है, समर्पण है।
कल की है तो बात जब वटवृक्ष की छाया के किस्से दूर-दूर तक सुनाए जाते थे। अनगिनत आंखों के आंसू पौंछने में केवल सेवाभावना रही है, जो जरूरतमंदों के पेड़ को सघन करने आया, वह किसी भी जरूरतमंदों को अपना नहीं था, लेकिन मानवता का धर्म पूरा करने आया था। .. फूलों से मुस्काना सीखो, हंसना और हंसना सीखो, मानव होकर मानवता से कुछ तो प्यार निभाना सीखो – गुनगुनाता जाता था।
वटवृक्ष के आसपास अब हाट लगी है। पैसा देकर सब्जी और अपने-अपने काम का सामान खरीदने लोग आने लगे हैं। हर दिन के साथ हाट में दुकानदार बढ़ रहे हैं। छाया अब दुकानदारों के लिए काम आने लगी है। वट वृक्ष के उस दर्द का अहसास उन्हे होना लाजमी है, जो छाया का धर्म समझते हैं। उन्हे लगने लगा है, यूं ही वृक्ष के पत्ते झड़ते रहे तो पत्तों की कपोलें असानी से शाखों पर नहीं आएंगे- बस यही कहना होगा- ओ वसंत तुम अब आए जब जीवन ही पतझार हो गया, अब मुस्कान फूल की लाए जब कांटों से प्यार हो गया।एक दौर था जब वट वृक्ष के नीचे लोग फैसले करवाने आते थे, लेकिन अब तो फैसले करने वाले अपने फैसलों के लिए दीगर जा रहे हैं। पंच परमेश्वर ही सवालों के घेरे में है।

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