मेरी कलम

मानवीय तरक्की के लिए वन्य जीवों को सजा न भुगतनी पड़े

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

पृथ्वी पर जीवन का आधार वन्यजीव है, जिस समय धरती से वन्यजीव का अस्तित्व पूर्ण रूप से समाप्त होगा, तब मानवीय जीवन बड़े ही दर्दनाक तरीके से ख़त्म हो जायेगा। वन्य जीवों के कारण जंगल समृद्ध होते है, जंगलों से जल स्त्रोत समृद्ध होते है, पेड़ों से मिट्टी का क्षरण रूककर उपजाऊ भूमि का बचाव होता है। सबको शुद्ध जल और शुद्ध प्राणवायु मिलती है, ऋतु चक्र बेहतर ढंग से कार्य करते है, समय पर पर्याप्त वर्षा होती है, मौसम और प्रकृति में संतुलन बना रहता है, प्राणियों की खाद्य श्रृंखला सुचारु रूप से चलती हैं। मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम होता है। प्राकृतिक आपदाओं में कमी आती है, फसलें लहलहाती है, समाज के हर तबके को पोषक तत्वों से भरपूर स्वास्थवर्धक अन्न प्राप्त होता है। बीमारियां कम होती है, अशुद्धता, मिलावटखोरी, घातक रसायनों का प्रयोग जैसे बुराइयों पर अंकुश लगाना संभव होता है। देश आत्मनिर्भर बनता है, प्राकृतिक संसाधन संपन्न बनते है। देश में गुणवत्तापूर्ण खाद्यान, उत्पादों का निर्यात बढ़ता है और आयात में कमी आती है। मनुष्य का जीवनमान स्तर सुधरता है, और ऐसे ही मानव और देश सही मायने में तरक्की करता है। अगर देखा जाए तो मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन ही वन्यजीवों पर आधारित है। मनुष्य लगातार प्रकृति को बर्बाद करता आया है, जबकि वन्यजीवों के बदौलत मानव जीवन का अस्तित्व टिका हुआ है, क्योंकि वन्यजीव ही जंगल, वन, प्रकृति के प्रमुख रक्षक है। इस वर्ष 2025 विश्व वन्यजीव दिवस की थीम “वन्यजीव संरक्षण वित्त: लोगों और ग्रह में निवेश” यह है। यह विषय वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को समर्थन देने के लिए स्थायी वित्तीय समाधान की तत्काल आवश्यकता पर है, वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए नवीन वित्तीय तंत्रों की आवश्यकता है।

देश में बढ़ती आबादी की सुख-सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों और सिमित स्त्रोतों पर असीमित दबाव बना हुआ है। सुंदर चहचहाते पंछियों को हम पहले ही शहरों से दूर भगा चुके है। नगर अब महानगरों का रूप धारण कर रहे है, शहरों के आसपास के गांव, जंगल, खेत, जल स्त्रोत, प्राकृतिक संसाधन तेजी से सिकुड़ रहे है। शहरों और महानगरों से गुजरने वाली नदियां अब नालों का स्वरुप धर चुकी है, बड़े-बड़े विषैले कूड़े के पहाड़, ई-अपशिष्ट और बिओमेडिकल वेस्ट लगातार बढ़ रहे है। मानवीय जीवन के लिए आवश्यक हर उत्पाद के लिए कच्चा माल प्रकृति से प्राप्त होता है, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन के कारण आपदाओं और जानलेवा बीमारियों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आबादी अनुरूप शहरों में नयी बस्तियाँ बसाई जा रही है, सड़कों पर मनुष्य से ज्यादा वाहनों की भीड़ नजर आती है। पृथ्वी के तापमान में लगातार बदलाव नजर आ रहा है, बड़े-बड़े हिमखंड पिघल रहे है। शहरों और गांव में भी भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है, इसका सीधा असर फसलों पर हो रहा है, तापमान बढ़ रहा है, खाद्यान का आयात बढ़ रहा है। प्रदुषण, शोर, आर्थिक विषमता और अपराध बढ़ रहे है। जंगल से वन्यजीव खाना-पानी के लिए मानवीय बस्तियों में आने को मजबूर है, जिसके कारण मानव और वन्य जीवों में संघर्ष तीव्र हो रहा है। आनेवाली पीढ़ियों के हिस्से के संसाधनों का दोहन भी हम कर चुके है। जितना हम प्रकृति से लेते है, उतना वापस करते हुए जाना होता है, लेकिन आज के युग में स्वार्थी मनुष्य प्रकृति को निचोड़कर उससे छीनता जा रहा है, प्रकृति के हर भाग पर अपना हिस्सा बनाता जा रहा है।

वन्यजीव अक्सर मानवीय हस्तक्षेप से दूर रहना चाहते है, परन्तु मनुष्य ही लगातार अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है, जिससे वन्यजीवों के लिए भोजन ढूंढना और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया है। मनुष्य की गलती की सजा वन्यपशुओं को भुगतनी पड़ती है, जलवायु परिवर्तन के मार का सबसे बड़ा भुगतान वन्यजीवों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। मानवी तरक्की से वन्य जीवन को सीधा नुकसान पहुंचता है, उनके प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं और प्रदूषण के कारण मौतें होती हैं। बहुत बार जंगली जानवर सड़क दुर्घटनाओं, बिजली गिरने, खुले गड्ढे में या खेत के कुओं में डूबने से मर जाते हैं। जैसे-जैसे सड़कों का विकास बढ़ता है, तेज गति से चलने वाले वाहनों के कारण जंगली जानवरों के मरने की संभावना बढ़ जाती है। शिकार जंगली जानवरों के लिए एक और खतरा है। वन्यजीवों में रोग, चोट, परजीविता, भुखमरी, कुपोषण, निर्जलीकरण, मौसम की स्थिति, प्राकृतिक आपदाएँ और अन्य जानवरों द्वारा शिकार इनके मृत्यु के अन्य कारण हैं। बढ़ती मानवीय गतिविधियों से झीलों, घास के मैदानों और जंगलों जैसे आवासों को नुकसान होता है, वन्यजीवों का घूमना-फिरना मुश्किल होता है। लगातार पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन होता है, जिससे वन्यजीवों को भोजन, पानी और अपने बच्चों, चूज़ों के पालन-पोषण के लिए बेहतर स्थान उपलब्ध नहीं हो पाते। प्रदूषण से वायु, मिट्टी और पानी दूषित होकर जंगलों तक पहुंच जाती हैं। विश्व वन्यजीव कोष के लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, केवल पिछले 50 वर्षों (1970-2020) में वन्यजीव आबादी के औसत आकार में 73 प्रतिशत की विनाशकारी गिरावट आयी है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि प्रकृति के विनाश और जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के कुछ हिस्से खतरनाक स्तर पर पहुंच रहे हैं, जिससे मानवता के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।

पिछले पांच वर्षों में महाराष्ट्र में 41 बाघों और 55 तेंदुओं का शिकार किया गया। महाराष्ट्र के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अभय कोलारकर द्वारा आरटीआई आवेदन के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 2020 से जनवरी 2025 के बीच राज्य में 168 बाघों और 808 तेंदुओं की मौत हुई है। हालांकि अधिकारियों ने कहा है कि अधिकतर मौतें प्राकृतिक कारणों और दुर्घटनाओं के कारण हुईं, लेकिन अवैध शिकार से बाघों की मौत की संख्या चिंताजनक है। एक शिकार-विरोधी विशेषज्ञ ने बताया कि इन हत्याओं में स्थानीय शिकारियों की प्रमुख भूमिका होती है, साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि क्रूर गिरोहों द्वारा किए जाने वाले 90 प्रतिशत से अधिक संगठित शिकार की घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं की जातीं। 2002 से 2023 तक महाराष्ट्र ने 867 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन खो दिया, जो 1.28 मीट्रिक टन कार्बनडाइऑक्सइड उत्सर्जन के बराबर है। आदर्श रूप से राज्य में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में यह केवल 16.53 प्रतिशत है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 के अनुसार, पिछले दो वर्षों में महाराष्ट्र का वन क्षेत्र लगभग 54.5 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है।

आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त स्रोतों से संकलित विश्व बैंक के विकास संकेतकों के संग्रह के अनुसार, 2022 में भारत में कुल वन क्षेत्र 726928 वर्ग किमी दर्ज किया गया। भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा सुदूर संवेदन उपग्रह डेटा और क्षेत्र-आधारित सूची की व्याख्या के आधार पर तैयार की गई द्विवार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल वन और वृक्ष आवरण 2023 तक 827,357 वर्ग किमी है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 25 प्रतिशत है। भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिकी स्थिरता बनाए रखने के लिए वन के अंतर्गत कुल भौगोलिक क्षेत्र का आदर्श प्रतिशत कम से कम 33 प्रतिशत होना चाहिए। 2010 से 2018 के बीच कुछ क्षेत्रों में 50 प्रतिशत तक बड़े पेड़ नष्ट हो गये। 2010 से 2022 तक के उपग्रह चित्रों का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि 2018 और 2022 के बीच अनुमानित 5.6 मिलियन बड़े पेड़ गायब हो गए। 2030 तक भारत के 45-64 प्रतिशत वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का अनुभव करेंगे। आधुनिक साधन सुविधा संपन्न बुद्धिमान मनुष्य समाज और सरकार के होते हुए भी अनेक मौकों पर कमजोर, हताश होकर आत्महत्या या अपराध कर लेता है, फिर ऐसे स्थिति में अगर वन्यजीव केवल खाद्य-पानी की जरुरत पूरी करने के लिए भी संघर्ष करना पड़े तो वे कितने बुरे हालात में है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसी परिस्थिति में वे कहा जाये।


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