मेरी कलम

सिद्ध किया संतजी ने सिद्धभाऊ को… समाजसेवियों के पथ प्रदर्शक बने

हिरदाराम नगर। रवि नाथानी

संत हिरदाराम साहिबजी के उत्तराधिकारी एवं परम् शिष्य श्रद्धेय सिद्ध भाऊ जी का जन्म 23 दिसम्बर 1953 को बैरागढ़, भोपाल में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती हेती बाई है और पिताजी का नाम श्री भंभाराम धनवानी था। उनका जन्म नाम होतचंद धनवानी था, किन्तु संतजी के साथ रहने से सिद्धभाऊ जी के व्यक्तित्व में निखार आता गया।
उनकी श्रद्धा, सेवा, समर्पण भाव और आज्ञा पालन देखकर संतजी बहुत खुश हुए और उनका नाम रखा सिद्ध भाऊजी बाल ब्रहम्चारी संत हैं। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन गऱीबों, दीन-दुखियों की सेवा, मानव कल्याण और राष्ट्र के सेवार्थ अर्पण किया है। संतजी के सभी सेवा कार्यों में संलग्न रहकर सेवाधारियों का पथ-प्रदर्शन करना उनके जीवन का परम लक्ष्य है। जिस तरह स्वामी रामकृष्ण परमहंस के ज्ञान सागर को विश्व में जन-जन तक पहुंचाने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने किया था, उसी तरह संत हिरदारामजी के सेवा एवं सिमरन के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया है परम श्रद्धेय सिद्धभाऊ जी ने।

कैसे जुड़े सतों से…
1973 में श्रद्धेय सिद्धभाऊ जी स्वामीजी के सानिध्य में आए। प्रथम मुलाकात में ही स्वामी जी को प्रणाम करके सिद्धभाऊ जी ने अपना तन, मन समर्पित कर दिया स्वामी जी के श्रीचरणों में। स्वामीजी ने सिद्धभाऊ से कहा कि तुम तो स्वयं बीमार लगते हो, तुम क्या सेवा कर पाओगे, तो सिद्धभाऊ जी ने कहा नहीं मैं बीमार नहीं हूं, हां कभी कभार बुखार, जुकाम होता रहता है। मेरा भाई डॉक्टर है, दवाई देता है और बुखार ठीक हो जाता है।

स्वामीजी ने कहा- ये अंग्रेजी दवाइयां बीमारी को दबाती हैं, ख़त्म नहीं करतीं। इसलिये तुम प्राकृतिक चिकित्सा की शरण में जाओ उसीसे तुम ठीक होगे। सिद्धभाऊ जी ने कहा जो आपकी आज्ञा। स्वामीजी सिद्धभाऊजी को स्वयं लेकर इंदौर गए, कुछ दिन रहकर प्राकृतिक चिकित्सा के जाने माने डॉक्टर भोजराज छाबडिय़ा के पास सिद्धभाऊजी का इलाज करवाया, स्वयं भी साथ रहे। कुछ दिनों के लगातार इलाज के बाद सिद्धभाऊ जी का शरीर एकदम तंदरुस्त एवं मज़बूत बन गया, वे दिलो जान से स्वामीजी की सेवा में लग गए।

सेवा का पाठ पढ़ाएंगे भाऊ
संत हिरदाराम जी के शिष्य सिद्ध भाऊ से मिलने के लिए संस्थाओं के पदाधिकारी आज कुटिया पहुंचेगे और वहां पर सिद्धभाऊ को बधाई देगे। हर साल सिद्धभाऊ सभी सेवाधारियों को केवल एक पाठ पढ़ाएंगे,की गरीबों की सेवा करों,किसी को सताओं मत,जीतना हो सके,बुढ़े बच्चों की सेवा करों आपकों लोक परलोक में सुख अपार मिलेगा।

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