वटवृक्ष के नीचे निंदकों की बैठक.. विकास पर तूं-तूं, मैं-मैं

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अजय तिवारी
दोपहर हो रही थी वट वृक्ष की छाया में जाकर बैठ गया… देखा “विकास की चौपाल” लगी है। कोई कह रहा है चप्पे-चप्पे को देख लो आपको समझ में आ जाएगा विकास। दूसरे ने कहा भाई जो सड़कें बनी है, क्या वही चप्पे-चप्पे हैं। इधर-उधर देखना मना है क्या? दूसरी ओर से जवाब आया अभी “ऐलान ए समय” पूरा होने में वक्त है। जरा सी देर क्या हुई छाती पीटने जगते हो। भाई “हुजूर” केवल संतनगर नहीं है। हुजूर का दायरा बहुत लंबा है। आप तो अपना रोना लेकर बैठ जाते हो। विकास यात्रा पर फोकस है इन दिनों। हो भी क्यों न मिशन 2023 में टिकट की राह यात्रा से ही तय होगी। सरकार की छवि के साथ अपनी छवि चमकानी है। आपको पड़ी चप्पे-चप्पे की पड़ी है।
न जाने कब होंगे दर्शन
अभी तो बहुत कुछ होना है। फाटक रोड पर आरओबी के लिए नारियल टूटना है। गुलाब उद्यान में संत हिरदारामजी की प्रतिमा और खेल मैदान में हेमू कालाणी की प्रतिमा ढकी हुई है। उसका लोकार्पण होना है। समझ रहे हैं भाई जब गुलाब उद्यान बनेगा तब संतजी की प्रतिमा के दर्शन करने का मौका मिलेगा। जब प्रदेश के मुखिया का समय मिलेगा उस दिन हेमू कालाणी की प्रतिमा का लोकार्पण होगा, आरओबी का भूमिपूजन भी हो जाएगा। क्या, कहा आरओबी… भाई कोर्ट कचहरी हो गई है उसका क्या? भाई वह ब्रिज का विरोध नहीं कर रहे हैं, विस्थापन की बात कर रहे हैं। विस्थापन, ब्रिज में कोई भी निजी भूमि नहीं आ रही है, वह तो मानवीयता है, जो कारोबार प्रभावित होने की आशंका से बसाने की बात कही जा रही है।
आप तो बेवजह की बात करते हो
देखो भाई आपकी तो आदत हो गई है बेवजह की बात करने की। घोषणा की क्या बात कर रहे हो… क्या स्वीमिंग पूल बना? क्या टेकरी पर्यटन स्थल बना? क्या पगड़ी रस्म हॉल बना? पुराना आधा-अधूरा छोड़कर नई जगह ठिकाना तलाश लिया गया है। वह भी भगवान जाने कब बनेगा? भाई भूमिपूजन और नारियल टूटने के बाद यदि काम नहीं हो पाया है तो कुछ पेंच तो होगा न। यही तो कह रहा हूं “पेंच मेंच” क्यों पहले क्यों नहीं देख लिया गया, जो हम जैसे लोगों का सवाल करने का मौका मिलता।
यार, बड़ा विजन है
भाई क्या बात करे आपको नजर नहीं आएगा 234 करोड़ रुपए का एलिवेटेड रोड जो बनेगा आने वाले समय में। सही है यार विजन बड़ा है, जब बनेगा तब बनेगा अभी तो बीआरटीएस में हायतौबा कर चलना पड़ रहा है। आदर्श मार्ग को ही ले लीजिए, बड़ी मुश्किल से आदर्श बनाने का काम हो पाया है, अभी भी वह सुंदरता नहीं दिख रही है, जो बनाते समय बताई गई थी।
निंदारस का आनंद
विटवृक्ष सब कुछ सुन रहा था- निंदा रस का आनंद तो वह नहीं सकता था, क्यों उसने छाया देना सीखा है? आज आलोचक नीचे आ बैठे हैं तो उनको भी सुन रहा है खामोशी से। कैसे कहता भाई सियासी मेला है, इस तरह की सजता रहेगा। विकास के दावे, वादे की तख्तियां वोट की फसल काटती रहेंगी। निंदक नीयरे रखाइए, किसे भाता है, जरूरत पड़ी प्रभाव से दबाव आगे का सफर तय कर लेंगे।

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