ये प्रभु… मेरी मेहनत रंग लाई
अजय तिवारी
ये प्रभु.. कल सुबह धूप जोरदार निकलना चाहिए, धूप निकल आई… फिर क्या था, ढोल लेकर निकल पड़ा वह। मैंने कहा था, प्रभु से प्रभु ने किया माना मेरा कहा। एक शख्स ने रोक कर कहा-भाई, गर्मी का मौसम है, दिन में धूप तो निकलना ही थी। रात में तो धूप खिली नहीं है, जो ढोल लेकर चिल्ला रहे हो। कुछ ऐसा ही संतनगर में होता है, समय के साथ या सामूहिक प्लॉन में कुछ मिलता है, एक नहीं कई ढोल सुनाई देने लगते हैं, मेरी मेहनत रंग लाई… हमने चिट्ठी पत्री नहीं की होती तो कुछ नहीं होता। भाई स्टेशन के विकास की बात करें तो अमृत भारत स्टेशन में एक नहीं हजारों स्टेशन बदल रहे हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे संतनगर स्टेशन का ही ‘भाग्य’ भाग्यवानों से बदला है।
ये प्रभु.. संतनगर की बात क्या करें। यहां तो सामने से थाली छीन रही है। योगा, पगड़ी रस्म सेंटर बनाने के लिए पेड़ काटे। पूरे विधि विधान को पूरा करने के बाद पेड़ों की ‘हत्या’ हुई। पेड़ों की हाय का असर ऐसा हुआ सौगात पर ग्रहण लग गया है। गनीमत रहे कहीं आने वाले दिनों में यह सुनने को नहीं मिले। ’50 लाख गए पानी में’। समझ से परे है, क्या अफसरान ने पेड़ काटने के पहले अंतिम एजेंसी की भूमिका के बारे में नहीं सोचा। लगता है हां में हां मिलाने के चक्कर में ‘गई भैंस पानी में’।
ये प्रभु.. पुराने पक्के पगड़ी रस्म हॉल पर तो ग्रहण कभी न हटने वाला लगा। वहां भी हाईटेंशन लाइन को पेंज फंसा। प्रभु निर्माण से पहले हाई टेंशन लाइन थी, न जाने क्यों अफसरान को नहीं दिखी। कहा जा रहा है, ऊपर का दबाव इतना होता है, जैसा फरमान होता है, उसकी तामिल होती है। सौगात मिलने से पहले इतना ढोल पिटता है कि ढोल ही फट जाता है और आवाज आना तक बंद हो जाती है।
ये प्रभु.. कुछ मिलने से पहले ही संतनगर के लोग लखनवी अंदाज में आदब बजाने लगते हैं। खुश करने के बाद क्या होता, यह भी संतनगर कई बार देख चुका है।