आदमी का अंतर्द्वंद और पड़ोसी बना अंर्तमन

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– चन्द्रहास को याद किया नाटक कर कलाकारों
भोपाल। BDC NEWS
कलाकारों ने द राइजिंग सोसायटी आर्ट एंड कल्चर के संस्थापक चन्द्रहास तिवारी को याद किया था। नाटक पड़ोसी का मंचन कर भावांजलि अर्पित की। आदमी के अंतर्द्वंद को सामने रखते हुए इस नाटक में दो पात्रों ने पूरे कैनवास का रंगकर्म के रंग भरे। एक किरदार अपने पड़ोसी यानी अपने अंतर्मन से बात करता है, तमाम सवाल और जवाबों से भरे नाटक के संवाद अभिव्यक्ति को दर्शकों तक पहुंचाने में कामयाब रहे।
नाटक एक वार से शुरू होता जहाँ वो अकेला बैठा है, तभी उसका पड़ोसी अंतर्मन वहाँ आ जाता है, और शुरू हो जाते है सवालों और जवाबों का एक-दूसरे को जानने-समझने का। आदमी शांति चाहता है, तन्हाई चाहता है।
और आप तन्हाई की तलाश में कहीं चले जाओ, लेकिन मन से दूर जाना असंभव है…… मन विचारों का थैला लिए हमारे साथ आ बैठता चाहे वह महखाना हो या मंदिर। यहां अंतर्मन बाह्य मन का पड़ोसी है, कहने को वह अपने आप से ही बात कर रहा है।….. अपने प्रतिबिंब से ही बात करता है….हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जब हम तन्हा भी होते हैं तो अपना ही अंतर्मन हमारा पड़ोसी बन बैठता है….. और जो कुछ भी उस मन की अथाह गहराई में होता है, उसको वह निकाल देना चाहता है…..।
इस स्थिति में एक चरित्र में दो किरदार नाचने लगते हैं और पड़ोसी शब्द का अर्थ यहां अंतर मन में उठ रहे विचारों से है। और उसके अपने विचार खुद को इस तरह परेशान करने लगते हैं कि वह कभी दार्शनिक तो कभी विचारक बन बैठता है।
निष्कर्ष नहीं निकलता….।
यही जीवन है इस जीवन का यही है रंग रूप।…. जीवन के रंग खोजते खोजते हमारा रूप बदल जाता है, लेकिन हमारा पड़ोसी हमारा अंतर्मन पीछा नहीं छोड़ता… हमें हजारों सवालों के जवाबों में उलझा देता है।
 सवालों के जवाब तलाशते हुए हम अंतर्मन की ऐसी यात्रा पर निकल जाते हैं…. कि वापस आना असंभव सा हो जाता है….। फिर लगता है कि जीवन एक यात्रा ही तो है… हमारा शरीर रेल का डिब्बा जिसमें मन बैठा है, और हमें यात्रा करा रहा है…जहां हमें नहीं जाना वहां भी ले जा रहा है हमारा मन हमारा पड़ोसी।
 अंतत: सब व्याख्याओं के बाद भी जीवन का निष्कर्ष नहीं निकलता है।  जिस तरह हमारा मन हम से बात करता है, या हम अपने आप से बात करते है वैसे ही बाक़ी लोग भी कहीं न कहीं अपने आप में उलझे रहते है,
कुछ बातें कह सको तो कह दो…कुछ बातें न कहो तो अच्छा है।
नाटक: पड़ोसी
मंच पर: लोकेंद्र , संगरत्ना
मंच परे – मंच व्यवस्थापक- रजनीश, परिकल्पना – प्रीति झा तिवारी, मंच सामग्री – अखिलेश रचित, म्यूज़िक, ऑपरेशन – कशफ़, लेखन व निर्देशन – तानाजी।

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