दमोह लोकसभा सीट पर कई दशक से भाजपा का वर्चस्व

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दमोह. BDC NEWS

बुंदेलखंड की सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीट दमोह में भाजपा लगातार 34 वर्ष से जीत दर्ज करती आ रही है। इस सीट पर लोधी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। कांग्रेस बार-बार अपना वर्चस्व लगातार खोती जा रही है।
भाजपा ने 2014 और 2019 में भाजपा ने प्रहलाद पटेल को चुनाव मैदान में उतारा। वे लगातार जीते और मोदी सरकार में मंत्री बने। पूर्व में इस सीट पर पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरि के बेटे सहित दूसरे जिलों के नेता चुनाव जीतते रहे हैं। दमोह सीट 1962 से 1971 तक तो कांग्रेस के पास रही। 1977 में जनता पार्टी की झोली में पहुंचा। 1980 और 1984 में फिर कांग्रेस जीती। इसके बाद से भाजपा का कब्जा बरकरार है।

दमोह लोकसभा

■ मतदान केंद्र – 2285

■ मतदाता-19,19,510

■ अब तक 15 बार लोकसभा चुनाव हुए

■ भाजपा को 9 और कांग्रेस को 5 बार मिली जीत

■ महिला प्रबंधन मतदान केन्द्रों की संख्या-100

लोधी समाज का नेतृत्व अधिक जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में लोधी समाज का नेतृत्व अधिक रहा है। यहां प्रह्लाद पटेल, शिवराज लोधी, चंद्रभान सिंह जीत हासिल करते रहे। इस बार भाजपा ने राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है जो पहले कांग्रेस से विधायक रहे और दलबदल के बाद उप चुनाव 2020 में कांग्रेस से हारे थे। अब भाजपा प्रत्याशी राहुल सिंह का मुकाबला कांग्रेस के तरवर सिंह से है, जो बंडा से विधायक (2018) रहे हैं।

सीट का अहम मुद्दा- चिकित्सा और रोजगार

सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है यहां पर कोई उद्योग नहीं होने से हजारों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। संसदीय क्षेत्र में चिकित्सा की सुविधा नहीं है जिससे लोग जबलपुर, नागपुर और सागर की ओर इलाज के लिए जाते हैं। उपचुनाव में हारे थे राहुल राहुल लोधी 2018 के चुनाव में दमोह विस क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2020 में मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिरने के कुछ महीनों बाद राहुल सिंह लोधी भाजपा में चले गए, जिन्हें कैबिनेट मंत्री दर्जा देकर दमोह विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में अपना प्रत्याशी भी बनाया लेकिन राहुल लोधी कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन से लगभग 17 हजार मतों से चुनाव हार गए थे।

दो बार हो चुका है क्षेत्र में परिवर्तन

दमोह संसदीय क्षेत्र की भौगोलिक सीमा में दो बार परिवर्तन हो चुका है। पहले दमोह, पन्ना और छत्तरपुर जिले की आठ विधानसभा सीटों को शामिल करते हुए इस संसदीय क्षेत्र का नाम दमोह-पन्ना संसदीय क्षेत्र था। वर्ष 2009 में हुए परिसीमन में दमोह, छतरपुर और सागर जिले की विधानसभा सीटों को शामिल करते हुए नया क्षेत्र बनाया गया। तब से यही स्थिति है।

इतिहासः

महाकौशल से लगा है, 1962 में पहला चुनाव चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह (कांग्रेस) 1962 के बाद से कोई महिला प्रत्याशी नहीं 1980 में स्थानीय प्रत्याशी प्रभु नारायण टंडन ने जीत हासिल की । इसके बाद जीत हासिल करने वाले डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया, चंद्रभान सिंह और शिवराज सिंह लोधी भी स्थानीय प्रत्याशी थे। 1962 में सहोद्रा राय सांसद चुनी गई थीं, हालाकि इसके बाद महिला उम्मीदवार या प्रत्याशी इन प्रमुख दलों से दिखाई दी। 1991 से 1999 तक सांसद रहे डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया को जब 2018 में टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा।

तीन जिलों की आठ सीटें

दमोह लोकसभा क्षेत्र के तीन जिलों की आठ विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें दमोह की चार सीट पथरिया, दमोह, जबेरा और हटा, सागर की तीन सीट देवली, रहली और बंडा, और छतरपुर की एक सीट मलहरा है। यह क्षेत्र महाकोशल से लगा हुआ है। दमोह में पहली बार चुनाव 1962 में हुए। 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस जीती जबकि 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने बाजी मारी। 1980 और 1984 में कांग्रेस की वापसी हुई।

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