कमलनाथ.. दिल्ली से तौबा, मध्यप्रदेश नहीं छोड़ेंगे, टारगेट फिर सीएम
नरेश तोलानी. भोपाल
लंबे समय तक कांग्रेस में दिल्ली की सियासत के ताकतवर नेता रहे कमलनाथ अब मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर नहीं जाना चाहते। प्रदेश में रहकर उन्हें सियासत करना रास आ रहा है। साल 2018 में भाजपा से सत्ता छीनने के बाद से वह मध्यप्रदेश का नेता बने रहना चाहते हैं। भले ही ऑपरेशन लोट्स और सिंधिया का साथ छोड़ने से उनका कार्यकाल महज डेढ़ का रहा हो, लेकिन वह मानकर चले रहे हैं मिशन 2023 कांग्रेस फतह करेगी.. लंबे समय से भाजपा का कार्यकाल देखने वाले मतदाता एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा जताएंगे।
पीसीसी पर मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी नहीं छोड़ी थी। शिवराज सरकार अपने पर नेता प्रतिपक्ष को लेकर जब अंदर और बाहर से आवाजें उठी तब कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पक्ष गोविंद सिंह को सौंपा, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष बने हुए हैं। अपने नेतृत्व में वह आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की संभावना देख रहे हैं।
सारा मैदान उनका है
कांग्रेस में उनके कद की बात करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने और दिल्ली की राजनीति की और बढ़ रहे दिग्विजय सिंह के कदम से चौतरफा मैदान उनके लिए है, जहां भी चाहे, जिस तरह चाहे बल्लेबाजी करें। विधानसभा चुनाव 2023 के लिए कमलनाथ ने हर मोर्चे पर काम शुरू कर दिया है। आदिवासी वोट बैंक को साध रहे हैं, सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं, सॉफ्ट हिन्दुत्व के साथ कांग्रेस को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके निशाने पर भाजपा की सरकार है।
असंतुष्टों को हवा
सरकार से नाराज कर्मचारी, किसान, युवाओं की नाराजगी को हवा देने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने के बाद से उनका फोकस संगठन पर है, बूथ लेबल तक संगठन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं, संगठन की व्यस्तताओं के चलते वह विधानसभा सत्र में भी इस बार नहीं आ पाए।