मेरी कलम

देश का भविष्य बचाना है: नशे के दलदल से बाहर निकलना होगा

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस – 26 जून 2025

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

नशा, जो अक्सर एक छोटे से शौक के रूप में शुरू होता है, अंततः व्यक्ति और समाज दोनों को पूरी तरह से तबाह कर देता है। यह सबसे पहले हमारे मस्तिष्क पर हमला करता है, जिससे हमारी सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है और शरीर धीरे-धीरे कमजोर पड़ता चला जाता है। जब तक नशे का असर दिमाग पर रहता है, नशेड़ी का व्यवहार अनियंत्रित और अप्रत्याशित हो सकता है। यह साफ है कि जब मस्तिष्क ही काबू में नहीं रहेगा, तो व्यक्ति खुद पर नियंत्रण कैसे रखेगा? वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2021 बताती है कि नशीली दवाओं का इस्तेमाल और अपराध एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। हम अक्सर देखते हैं कि दुनियाभर में अपराधों में भयानक वृद्धि का एक बड़ा कारण नशा ही है; आधे से ज़्यादा अपराध या तो नशे की हालत में किए जाते हैं या फिर नशे की ज़रूरत पूरी करने के लिए। यहां तक कि नशे के लिए पैसे न मिलने पर अपने माता-पिता की हत्या जैसी दिल दहला देने वाली खबरें भी अब आम हो गई हैं।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि अपराध अब बेहद कम उम्र में ही देखने को मिल रहे हैं, स्कूली बच्चे भी नशे की लत में फंसते जा रहे हैं। माता-पिता का लापरवाह रवैया, बच्चों पर आंख बंद करके भरोसा करना, फैशन और फिल्म इंडस्ट्री का नकारात्मक प्रभाव, और सोशल मीडिया की लत ने बच्चों के विकास को बुरी तरह बिगाड़ा है। अगर इन मासूम बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर अभी से नशे का जहर हावी होने लगा, तो हमारे देश का उज्ज्वल भविष्य अपराधों के गहरे दलदल में धंस जाएगा। आज चारों ओर मादक पदार्थों की तस्करी, नशेड़ियों द्वारा अपराध और दुर्घटनाएँ आम बात हो गई हैं; शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो जब इससे जुड़ी खबरें न आती हों। मादक पदार्थों का जाल तेज़ी से फैला है, और अब तो नशे की तस्करी में भी बच्चों का इस्तेमाल हो रहा है।

नशे के प्रकार और भयावह आँकड़े

भारत में सबसे ज़्यादा प्रचलित मादक पदार्थों में शराब, मारिजुआना (गांजा, हशीश, भांग), हेरोइन (ओपिओइड), फार्मास्युटिकल ओपिओइड (जैसे फेंटेनाइल, कोडीन), तंबाकू (निकोटीन), मेथामफेटामाइन (क्रिस्टल मेथ), कोकेन, बेंजोडायजेपाइन (जैसे डायजेपाम, अल्प्राजोलम), और अफीम शामिल हैं। छोटे बच्चे भी नशे के लिए इनहेलेंट का इस्तेमाल करते हैं, जैसे गोंद, व्हाइटनर, कफ सिरप, दर्द निवारक, पेंट थिनर, फिनाइल, सैनिटाइजर, पेट्रोल या अन्य ज्वलनशील तेज़ गंध वाले रसायन। बच्चों में शराब और तंबाकू का बढ़ता उपयोग भी एक गंभीर चिंता का विषय है। आज संगठित अपराध अवैध नशीली दवाओं के व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर के लोगों और समुदायों पर विनाशकारी परिणाम हो रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस वर्ष 2025 के अंतर्राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग विरोधी दिवस का नारा है: “जंजीरों को तोड़ना: सभी के लिए रोकथाम, उपचार और पुनर्प्राप्ति!” यह नारा नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी से निपटने के लिए सामुदायिक समर्थन, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और वैश्विक एकजुटता की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। हम सभी को अपने स्तर पर जागरूक होकर नशे के खिलाफ इस लड़ाई में शामिल होना होगा।

चौंकाने वाले तथ्य: केरल में नशे की समस्या

यह सुनकर शायद आपको हैरानी होगी, लेकिन आंकड़े बेहद भयावह हैं: देश के सबसे शिक्षित राज्यों में से एक केरल में नशेड़ियों की संख्या पंजाब से भी अधिक है। 2024 में, केरल ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत 27,701 मामले दर्ज किए, जो पंजाब के 9,025 मामलों से तीन गुना ज़्यादा हैं। देश के कुल राज्यों में से केरल में ड्रग से संबंधित मामलों की दर सबसे अधिक है। पिछले चार वर्षों में, केरल में 87,101 ड्रग-संबंधित मामले दर्ज किए गए हैं, जो पिछली अवधि की तुलना में 130% की वृद्धि दिखाते हैं। राज्य का हर ज़िला इस समस्या से प्रभावित है, और इस साल के पहले दो महीनों में, 30 हत्याएं मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित थीं, जो राज्य में कुल हत्याओं का आधा हिस्सा हैं।

क्या कहते डब्ल्यूएचओ के आंकड़े

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की सड़कों पर 50 लाख से ज़्यादा बच्चे अमानवीय परिस्थितियों में रहते और काम करते हैं, जहाँ उन्हें नशीली दवाओं के सेवन का बहुत ज़्यादा जोखिम है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि देश में 10 से 17 साल की उम्र के 1.58 करोड़ बच्चे नशीले पदार्थों के आदी हैं। WHO के अनुसार, शराब के हानिकारक उपयोग से हर साल 3.3 मिलियन मौतें होती हैं। तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क के रूप में एकत्र किए गए प्रत्येक 100 रुपये से भारतीय अर्थव्यवस्था को 816 रुपये का नुकसान होता है। 2017 और 2018 के बीच 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए सभी बीमारियों और मौतों से तंबाकू के उपयोग की आर्थिक लागत 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। 2011 और 2050 के बीच, शराब से संबंधित मौतों के कारण 258 मिलियन जीवन वर्ष नष्ट हो जाएंगे। मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकार वाले 64 मिलियन लोगों में से केवल 11 में से 1 को ही उपचार मिल पाता है। गृह मंत्रालय ने 18 मार्च, 2025 को लोकसभा को बताया कि पिछले पांच वर्षों में देश भर के बंदरगाहों से 19 मामलों में कुल 11,311 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की नशीली दवाएं जब्त की गई हैं। इन सब के बावजूद, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अनुसार, भारत में नशीली दवाओं की लत बढ़ रही है; अनुमानित 100 मिलियन लोग भारत में विभिन्न मादक पदार्थों से पीड़ित हैं। संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा प्रकाशित विश्व ड्रग रिपोर्ट 2024 के अनुसार, नशीली दवाओं का वैश्विक उपयोग 292 मिलियन लोगों तक पहुंच गया है, जो पिछले दशक की तुलना में 20% की वृद्धि है।

सामूहिक प्रयास ही समाधान है

हमें वयस्कों को तत्काल उपचार मुहैया कराना होगा और नई पीढ़ी को नशे की ओर बढ़ने से रोकना होगा। इसमें सरकार, सामाजिक संस्थाओं और आम जनता का आपसी सहयोग बेहद ज़रूरी है। अभिभावकों को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी; उनकी लापरवाही के कारण बच्चे बिगड़कर समाज और देश के लिए खतरा न बन जाएं। बच्चों पर अभिभावकों का उचित नियंत्रण, एक सकारात्मक घरेलू माहौल, जागरूकता, और परिवार के सदस्यों के बीच बेहतर तालमेल ही उन्हें नशे से दूर रख सकता है।

अभिभावकों को बच्चों की जिद, दिखावा और वास्तविक ज़रूरतों के बीच का अंतर समझना होगा। लाड़-प्यार में या समय की कमी के बहाने बच्चों पर से अपना नियंत्रण न खोएं। उनकी गतिविधियों पर नज़र रखें। उनसे दोस्ताना माहौल बनाएं और उनके साथ समय बिताएं। उन्हें अच्छी-बुरी बातों का ज्ञान दें और उन्हें नैतिक शिक्षा दें। बच्चों को जिम्मेदारियों और रिश्तों को समझना सिखाएं। बच्चे बड़ों की नकल करते हैं, इसलिए उनके सामने अनुचित व्यवहार करने से बचें; न खुद नशा करें और न ही अपनों को करने दें। बच्चों को सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेम्स, भड़काऊ फैशन और मोबाइल से दूर रखें। उन्हें उनकी मासूमियत और बचपन को जीने दें, उन्हें मैदानी खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। अभिभावकों को भावनाओं में बहकर नहीं, बल्कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को ध्यान में रखकर नियम बनाने चाहिए और उन्हें सदाचार, परोपकारिता, सत्यनिष्ठा और इंसानियत का पाठ पढ़ाना चाहिए। ऐसे संस्कारों वाले बच्चों को कभी नशे की लत नहीं लग सकती, और तभी हमारा देश नशामुक्त होकर सशक्त बन पाएगा।

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