धर्मभोपाल

Basant Panchami : वीणावादिनी की आराधना, मांगा विद्या का वरदान

भोपाल. BDC NEWS

वसंत पंचमी का पर्व दो और तीन फरवरी को मनाया गया। मुहूर्त से उदया तिथि तीन फरवरी होने से मां सरस्वती के साधकों ने सोमवार यानी 3 फरवरी को मां की आराधना की। वैसे तो विद्यार्थी और शिक्षक आजीवन सरस्वती-पूजन करते हैं। मां सरस्वती विद्या की सर्वमान्य देवी हैं,उस विद्या की जो कामधेनु हैं,जो अखिल कामनाओं की पूर्ति करनेवाली है,जो अमृतत्व प्राप्त कराती है (विद्या अमृतं अश्नुते) तथा जो मुक्ति प्रदान करती है (सा विद्या या विमुक्तये)।वे साहित्य और संगीत का अधिष्ठात्री देवी है.साहित्य,जो हमारे मुरझाये हृदय को हराभरा कर देता है,जो हमारा अनुरंजन-मनोरंजन ही नहीं करता वरन् हमारी चित्तवृत्तियों का परिष्कार कराता है।संगीत जो टूटे हुए हृदय की महौषध है,जो देवदूतों की भाषा है,जो आत्मा के ताप को शान्त करता है तथा जिसका अनुगमन स्वयं परमात्मा करता है.जिस साहित्य और संगीत के बिना मानव पशुतुल्य है उसी वरद साहित्य और संगीत की वरदायिनी वागीश्वरी का नाम है-सरस्वती.अतः जो जितना बड़ा कवि,साहित्यकार,पंडित,ज्ञानी एवं वक्ता है उसपर माता सरस्वती की अनुकम्पा का उतना ही मेह बरसा है।

परमेश्वर की तीन महान शक्तियाँ हैं

महाकाली,महालक्ष्मी तथा सरस्वती .शक्ति के लिए काली,धन के लिए लक्ष्मी तथा विद्या के लिए सरस्वती की समाराधना होती है.सरस्वती का सरलार्थ है गतिमयी.वाग्देवी या सरस्वती आध्यात्मिक दृष्टि से निष्क्रिय ब्रह्म को सक्रियता प्रदान करनेवाली हैं.इन्हें आद्या, गिरा, श्री, ईस्वरी, भारती, ब्राह्मी,भाषा, महाश्वेता, वाक्, वाणी, वागीशा, विधात्री,वागीश्वरी, वीणापाणि, शारदा, पुस्तकधारिणी,जगद्व्यापिणी,हरिहरदयिता,ब्रह्माविचारसारपरमा आदि नामों से पुकारा गया है।

कुन्द,चन्द्रमा, हिमपंक्ति जैसा जिनका उज्ज्वल वर्ण है,जो उजले वस्त्रों से आवृत हैं,सुन्दर वीणा से जिनका हाथ अलंकृत है,जो श्वेत कमल पर बैठी है, ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवगण सर्वदा जिनकी स्तुति करते रहते हैं,जो सभी प्रकार की जड़ताओं का विनाश करनेवाली हैं,वही सरस्वती मेरी रक्षा करें.

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