नहीं जलाते रावण को नहीं मनाते दशहरा
देश में भगवान शिव के साथ कई जगह हैं रावण के मंदिर
गुरूदेव तिवारी
रावण को अन्याय, अधर्म और असत्य का प्रतीक माना जाता है, इसलिए हर साल उसके वध के दिन दशहरा को उसे पुतलों के दहन की परंपरा है, लेकिन दशानन की श्री लंका में सम्राट होने की वजह से पूजा अर्चना की जाती है, भारत में कई जगह रावण के मंदिर हैं, जहां उसकी पूजा की जाती है। कई शिव मंदिर में रावण की मूर्तियां लगी हैं।
मध्यप्रदेश के मंदसौर में पूजा
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में रावण रूंडी और शाजापुर जिले के भदखेड़ी में भी रावण की पूजा की जाती है। मंदसौर में नामदेव वैष्णव समाज के लोग दशहरे के दिन रावण की पूजा करते हैं। यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं इसलिए रावण दहन नहीं करते । दशहरा पर हर रावण की पूजा की जाती है, दामाद मानने के चलते क्षेत्र में महिलाएं दशहरे के दिन घूंघट में रहती हैं। पुरुष इच्छाओं पूर्ति के लिए रावण की पूजा करते हैँ। रावण के साथ मेघनाद की पूजा भी की जाती है।
यूपी के बिसरव गांव में पूजा
उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में बिसरख गांव में रावण का मंदिर है, जहां 42 फिट ऊंची शिवलिंग की मूर्ति और 5.5 फिट ऊंचे रावण का स्टेच्यू है। इस गांव में दशहरे पर रावण के लिए शोक मनाया जाता है। रामलीला पर रोक है और रावण दहन नहीं होता।
कानपुर में दशानन मंदिर
यूपी के कानपुर में दशानन मंदिर हैं जहसं रावण की पूजा की जाती है। यह मंदिर शिवाला क्षेत्र में बने शिव मंदिर के पास है। दशानन मंदिर केवल दशहरा के दिन ही खुलता है, जहां बुद्धिजीवी महाज्ञानी के दर्शन करने आते हैं। लोग इस मंदिर में रावण को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
देवी देवताओं के साथ रावण
जोधपुर में मुद्गल ब्राह्मणों ने रावण का मंदिर बनवाया है, जोधपुर को मंदोदरी का मूल स्थान माना जाता है। रावण मंदिर शहर के चांदपोल क्षेत्र में महादेव अमरनाथ और नवग्रह मंदिर परिसर में है, जहां रावण के आराध्य देवताओं, शिव और देवी खुराना की मूर्तियां स्थापित हैं।
रावण की होती है पूजा
आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा शहर में रावण की पूजा की जाती थी। रावण के चित्रों को काकीनाड़ा में विशाल शिवलिंग के पास भगवान शिव के साथ स्थापित जाता है। मंदिर के गेट पर रावण की विशाल प्रतिमा लगी है।
दशहरा नहीं मनाते
हिमाचल के कांगड़ा बैजनाथ शहर में दशहरा नहीं मनाया जाता, बैजनाथ शहर भगवान शिव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसे 13 वीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां के लोगों का मानना है रावण एक विद्वान, कला के पारखी और शिव के अनन्य अनुयायी था, विद्वान राजा को जलाना उचित नहीं है, वह सभी वेदों का ज्ञाता था।