सौरभ की दौलत के राजदारों की नींद उड़ी
नियुक्ति में मदद करने वाले नेता चिंतित
परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा के घर मिली अकूत दौलत को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक के राजनीतिक आकाओं से लेकर मंत्रालय के प्रशासनिक हल्कों तक में इन दोनों चर्चाओं का दौर गरम है। चर्चा है कि आखिर यह दौलत है किसकी ? सूत्र बताते हैं कि यह दौलत भाजपा के एक बहुत बड़े कद्दावर नेता , दो वर्तमान मंत्री, एक पूर्व मंत्री और एक सेवानिवृत आईपीएस अफसर के द्वारा जमा की गई अकूत धन संपदा का एक मामूली हिस्सा है। बताया जाता है कि जिस तरीके से परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा को नियम कायदों को ताक में रखकर अनुकंपा नियुक्ति मिली, इसमें इन नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान है। छापे के बाद से नेताओं की नींद उड़ी हुई है। सूत्र बताते हैं कि सौरभ शर्मा को नियम के अनुसार क्लर्क का काम ऑफिस में सौंपा जाना था, लेकिन अनुकंपा नियुक्ति के साथ ही उसे सीधे फील्ड पोस्टिंग दे दी गई। परिवहन विभाग में आरक्षक का पद प्रवर्तन श्रेणी का है और इसे व्यापम के जरिए ही भरा जा सकता है। नियुक्ति मिलने के बाद आरक्षक ने मैनेजर खजांची का दायित्व संभाल लिया और कुछ ही समय में भाजपा के कद्दावर नेता का विश्वास पात्र बन गया। अब कद्दावर भाजपा नेता और सेवानिवृत आईपीएस अफसर की नींद उड़ी हुई है कि अगला छापा कहां पढ़ने वाला है? सूत्र बताते हैं कि छापे का यह सफर अब बुंदेलखंड की तरफ जाता दिखाई दे रहा है। सूत्र बताते हैं कि एक बड़े भाजपा नेता से भी आईटी पूछताछ कर सकती है।
हाशिये पर चल रहे आईएएस को मिली तवज्जो !
लंबे समय से हाशिये पर चल रहे हैं राज्य शासन के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर फिर लूप लाइन से मेन लाइन पर आ गए हैं। आईएएस अफसर अब इससे खुश भी नजर आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि मोहन सरकार में वरिष्ठ आईएएस अफसर को एक प्रमुख विभाग से हटकर लूप लाइन में भेज दिया था, लेकिन अब उन्हें सरकार की प्राथमिकता वाला एक विभाग सौंपा गया है। इसका नतीजा यह है कि वरिष्ठ आईएएस अफसर पिछले दिनों सरकार के मुखिया के साथ विदेश यात्रा पर भी गए और वहां निवेश की संभावना पर उद्योगपतियों के साथ चर्चा में प्रमुख भूमिका निभाई। सरकार के मुखिया भी वरिष्ठ आईएएस ऑफिसर की कार्य प्रणाली से खुश हैं। मुख्य सचिव तक वरिष्ठ आईएएस अफसर के कामकाज की मीटिंग के दौरान तारीफ कर चुके हैं।
डीजीपी की पहली जनसुनवाई और मीडिया की नो एंट्री
मध्य प्रदेश पुलिस के मुखिया, पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना की मंगलवार को पहली ही जनसुनवाई चर्चाओं में रही। डीजीपी मकवाना की जनसुनवाई की खबरें जस की तस या कहें अन्दर खाने की खबरें मीडिया में न प्रकाशित हो जाएं, इसके लिए डीजीपी साहब ने मीडिया का प्रवेश ही वर्जित कर दिया। पुलिस मुख्यालय से मीडिया कवर करने वाले अखबार नवीस जब पीएचक्यू पहुंचे तो उन्हें भी डीजीपी की जनसुनवाई में जाने से रोक दिया गया। पत्रकारों से कहा गया कि ऊपर से निर्देश है कि जनसुनवाई में मीडिया की एंट्री न हो। सूत्र बताते हैं कि पुलिस अफसरों ने निर्देश दिया था कि जनसुनवाई में आने वाले पीड़ितों की डीजीपी से चर्चा जस की तस मीडिया में स्थान न बना ले, जिस से पुलिस मुखिया या अफसरान की किरकिरी न हो। हालांकि बाद में पुलिस मुख्यालय से शाम को जनसुनवाई का सरकारी प्रेस नोट जरूर जारी हुआ। डीजीपी को जनसुनवाई में मीडिया की एंट्री से क्यों परहेज रहा ? चर्चा का विषय है जबकि डीजीपी की कार्य प्रणाली पारदर्शिता के लिये जानी जाती है।
विधायकों की उदासीनता
मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता और विपक्ष के विधायकों की उदासीनता एक संशोधन विधेयक में दिखाई दी। विधायकों ने संशोधन विधेयक पर न चर्चा में भाग लिया ना सुझाव दिया और संशोधन विधेयक पारित हो गया। ऐसी उदासीनता शायद पहले ना देखने को मिली हो। प्रदेश विधानसभा में पिछले दिनों नगरीय निकाय के दो संशोधन विधेयक पारित हुए। जिसमें एक संशोधन विधेयक के जरिए नगर पालिका परिषद के अध्यक्षों का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने का प्रावधान किया गया और यह संशोधन सदन में बिना चर्चा के पारित हो गया। सदन से विधेयक पास होकर कानून का रूप लेते हैं। हमारे द्वारा चुने गए विधायक चर्चा में रुचि न लें यह दुर्भाग्य जनक स्थिति है। सदन में अध्यक्ष ने जब आसंदी से घोषणा की कि संशोधन विधेयक के लिए एक भी विधायक ने चर्चा के लिए नाम नहीं दिया है तो विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गी ने सदन में संशोधन विधेयक पारित करने का अनुरोध किया जो बाद में पारित हो गया। बता दें कि संशोधन विधेयक से पूर्व नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष का निर्वाचन पार्षद करते थे अब जनता चुनेगी।
सदस्यता अभियान में टांय टांय फिस
मध्य प्रदेश भाजपा ने सदस्यता के अभियान में राष्ट्रीय स्तर पर झंडे गाड़ दिये हों किंतु प्रदेश के ही कुछ कद्दावर नेताओं के यहां सदस्यता अभियान टाय टाय फिस हो गया। कद्दावर नेता दिल्ली तक बातें बड़ी बड़ी बातें करके आए, लेकिन सदस्यता अभियान ने उनकी साख पर बट्टा लगा दिया है… पार्टी में कद्दावर नेताओं के विरोधी मूँछ पर ताव देते फिर रहे हैं की सरकार चलाने वाले रसूखदारों के यहाँ सदस्यता का भांडा फूट गया.. और आस लगाए बैठें की अब कम से कम ऐसे नेताओं पर नकेल कसेगी..