संतनगर की चौपाल

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तन, मन, धन अब और नहीं, बदल गए महानुभाव

सब कुछ भुलाकर जुटे थे समाजसेवा में। चाहे समाजसेवा हो, राजनीति, पर्यावरण स्वच्छता के लिए तो क्या नहीं किया। अब यू टर्न ले लिया है, अपनी पुरानी जिंदगी में लौट गए हैं। पहले चर्चा ए खास होते थे। अब खास मौकों पर नजर नहीं आ रहे हैं। हर दिन फोटो शोटू को सिलसिला भी खत्म हो गया है। उनके पुराने अंदाज की बात करें तो ‘तन, मन, धन सब कुछ है तेरा की’ तर्ज पर समाज सेवा को समर्पित कर दिया था। यू टर्न भी ऐसा लिया की अपना लुक भी बदल लिया। उनके चर्चे फिर भी होते हैं, कहा जाता है-चलो समझ गया नहीं तो घर फूंक तमाशा देखने वाली कहावत चरितार्थ हो जाती।

आयोजन संस्थाओं का धन संतनगर का

चैतीचांद पर उत्सव होता है, हो भी क्यों न। भगवान झूलेलालजी का अवतरण दिवस है। धार्मिक कार्यक्रमों के अलावा धूम मचाने वाले कार्यक्रम दो दिन करती हैं। आयोजन सामाजिक संस्थाओं का हैं, लेकिन धन व्यवस्था संतनगर के व्यापारी करते हैं। आयोजन के लिए धन संग्रह करने वाले इतने प्रभावी होते हैं जितने कह देते हैं, उतने मन हो न हो, लेकिन समर्पित करना पड़ते हैं। धन दबाव कम करने के लिए कई बार एक आयोजन की पहल हुई। वैसे यदि फ्लैश बैक में जाएं तो चैतीचांद के रंगारंग कार्यक्रम चर्चा में रहते हैं। आज कल अनुशासन की परिधि में होते हैं।

हॉय तौबा करने वालों खुद के वाहन पहले हटाएं

मेन रोड पर यातायात को लेकर हॉय तौबा मचाने वाले व्यापारी कितने समस्या के लिए जिम्मेदार हैं, इसकी गवाही मेन रोड देता है। एक  दुकान पर खुद के चार वाहन खड़ा करना आदत हो गई है। जहां भी कॉरिडोर हट रहा है उसे कॉर पार्किंग बना डाला है। पुलिस यदि सुधारने पर आ जाए तो एक दिन  जुर्माना और क्रेन से वाहन उठाने का रिकॉर्ड बन जाएगा। ठेले वाले कहते हैं साहब लोगों को हमारे ठेले दिखते हैं। दुकान के सामने खड़े अपने वाहन दिखाई नहीं देते। जनसंवाद सब को याद है, ऐसा कोई नहीं था जिसने हॉय तौबा नहीं की थी।

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