मेरी कलम

विश्‍व कल्‍याण के लिए बेटियों का आगे बढ़ना आवश्‍यक

-भूपेन्‍द्र शर्मा, वरिष्‍ठ पत्रकार

रीवा, मध्य प्रदेश की अवनि चतुर्वेदी ने मिग लड़ाकू विमान उड़ाकर बेटियों की आसमानी उड़ान में चार चांद लगा दिए। फि‍रोजपुर, पंजाब की 12वी कक्षा की छात्रा भजनप्रीति कौर ने पराली को खाद में बदलने का फार्मूला तैयार राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार जीता है। नेपाल में कन्‍याओं को देवी के रूप में पूजे जाने की 700 साल पुरानी परंपरा, जिसमें बालिकाओं को शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है, को बदलने में जुटी है पूर्व देवी चनिरा। कट्टरपंथी देश ईरान मे आए बदलाव से 1979 की इस्‍लामिक क्रांति के 40 साल बाद पहली बार लड़कियों और महिलाओं ने स्‍टेडियम में जाकर मैच देखा। गुलाटी गांव मप्र के सरकारी स्‍कूल के हेडमास्‍टर शंकरलाल ने कन्‍या स्‍कूल पर 9 साल में 7 लाख रुपए खर्च किए। छात्राओं को स्‍कूल लाने के लिए ट्रैक्‍टर भी खरीदा। इंडिया स्किल्‍स रिपोर्ट 2022 के अनुसार देश में नौकरी योग्‍य 49 प्रतिशत बच्‍चों में 52 प्रतिशत बालिकाएं हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो के अनुसार 2015 के बाद महिला अपराधों में कमी आई है और महिला, बेटियां पूर्व की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी ने राज्‍य सभा में बताया कि 2015-20 के समय में 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियो के साथ यौन हिंसा की घटनाओं मे कमी आई है।

निश्चित रूप से पिछले कुछ ही समय में निरंतर पढ़ने मे आए ये समाचार बालिकाओं के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य और विकास के प्रति सुखद संकेत हैं, लेकिन इन खबरों के साथ-साथ-  पांच महाद्वीपों में लेंसेंट द्वारा की गई स्‍टडी के अनुसार मौसम में बड़े बदलावों से महिला और बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा,यौन शोषण में हो रही है वद्धि। वहीं बेटियों की जल्‍दी विवाह करने की इच्‍छा भी बढ़ रही है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि 15 साल से अधिक उम्र की लड़की कर सकती है शादी। मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन यह जायज है। संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार जून 2022 में स्‍लोवेनिया में चल रहे ट्रेनिंग कैंप में सइक्लिस्‍ट का यौन उत्‍पीड़न करने वाले कोच के विरुद्ध पुलिस केस तक नहीं किया, न फेडरेशन सामने आया, न साई और खेल मंत्रालय। बलूचिस्‍तान निर्वासित सरकार की पीएम डॉ. नायला कादरी ने कहा कि पाकिस्‍तान में लड़कियों की बॉडी को मशीन से ड्रिल किया जा रहा, जीना मुश्किल, मौत आसान। अमेरिका में हर साल 15 वर्ष से कम आयु की 2000 लड़कियों के अबॉर्शन होते हैं। गर्भपात पर पाबंदी से दुष्‍कर्म पीड़ितों की मुश्किलें बढ़ेंगी। पटना में आर्केस्‍ट्रा ट्रैप में फंसीं दो क्षेत्रों की 1000 लड़कियां, जिनमें अधिकांश नाबालिग। चीन का आबादी बढ़ाने का फॉर्मूला- आईवीएफ के जरिए कुंवारियों को भी दी मां बनने की आजादी। ब्रिटेन की डरहम यूनिवर्सिटी मे हुए शोध के अनुसार म्‍यूजिक फेस्टिवल में जाने वाली हर तीसरी लड़की से होती है छेड़छाड़। उदयपुर, राजस्‍थान के गांवों में फोटो दिखाकर बेची जा रही हैं बेटियां। अमेरिकी सेना के लिए ट्रेनिंग सेंटर में बालिकाओं का यौन शोषण। 33 इंस्‍ट्रक्‍टरों पर केस दर्ज। यह सूची बहुत लंबी है।  

रामचरितमानस में सही कहा गया है-

कलि केवल मल मूल मलीना।

पाप पयोनिधि जन मन मीना।।

कलियुग केवल पाप की जड़ है और बुरा है। इसमें मनुष्‍य का मन पाप रूपी समुद्र में मछली बना हुआ है। यानी अधिकांश पाप में ही लिप्‍त रहना चाहते हैं।

सृष्टि और समाज की संरचना एवं संचालन के लिए स्‍त्री-पुरुष दोनों की समान आवश्‍यकता है। इनके सौंदर्य और विकास के साथ दुर्दशा और पतन के लिए भी दोनों की जवाबदारी भी बराबर है। निस्‍संदेह  स्‍त्री-पुरुष दोनों की प्राकृतिक संरचना में अंतर है, इसकी स्‍वीकार्यता के साथ परस्‍पर सहभागिता से युगों-युगों से सृष्टि-समाज संचालित हैं। किसी क्षेत्र में स्त्री श्रेष्ठ है, तो कुछ में पुरुष उपयुक्‍त है। इन तथ्‍यों को अंगीकृत करते हुए ही दोनों समाज, राष्‍ट्र के सुचारु संचालन एवं विकास के लिए मिलकर कार्य करते हैं। दोनों परस्‍पर पूरक हैं, सहयोगी हैं। भारतीय संस्‍कृति, सभ्यता में तो महिला पूजनीय है, सम्‍मानित है। महिलाओं को परिवार, समाज और राष्‍ट्र में हर स्‍तर एवं क्षेत्र में बराबरी के अवसर, अधिकार दिए गए हैं।

वैदिक काल में स्‍त्री-पुरुष को समान शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेदिक ऋचाओं के अनुसार कन्‍याओं का विवाह परिपक्‍व आयु में होता था और उन्‍हें वर चुनने की भी स्‍वतंत्रता थी। वेद-ग्रंथों में गार्गी और मैत्रेयी जैसी प्रबुद्ध स्त्रियों का उल्‍लेख है, किंतु 1526 में बाबर के आक्रमण के साथ हिंदू धर्म, संस्कृति, सभ्‍यता, शिक्षा, उद्योग, व्यापार, कला सब तहस-नहस होती गईं। सन 1857 में अंतिम मुगल बहादुरशाह तक लगभग 331 वर्ष मुगलों की बर्बरता और उसके बाद ईसाइयत की गुलामी ने महिलाओं की आजादी एवं अधिकारों को सीमित कर दिया। सात सदियों का बीता यह दौर भारतीय स्‍त्री के जीवन के लिहाज से बेहद दुखद रहा। देश आज भी सदियों की उस दुर्दशा से पूरी तरह उबर नहीं पाया है। आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जो सोते-जागते रोटी, कपड़ा और मकान के लिए ही जूझते रहते हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि इस वर्ग के लोगों के लिए बालिकाओं की शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य का कोई अर्थ नहीं और जितनी जल्‍दी हो सके उनका विवाह कर ससुराल भेज देना ही उनकी बड़ी सुरक्षा है। इसी तरह निम्‍न मध्‍यम, मध्‍यम वर्ग भी भौतिकवाद और बाजारवाद युग में निरंतर आर्थिक अभाव में जीता है। ऐसे में अधिकांश माता-पिता कन्‍याओं को बोझ की तरह लेते हैं। क्‍योंकि उन्‍हें एक दिन दूसरे घर जाना है, यह सोचकर उनकी शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य पर व्‍यय करने के बजाय विवाह के लिए पैसा जोड़ने को ज्‍यादा तरजीह देते हैं।

तिस पर पिछले 100 साल में जनसंख्‍या की दृष्टि से देश में आए तूफान ने आग में घी डालने का काम किया। सन 1801 में भारत (पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित) की कुल आबादी 20 करोड़ से कम थी। फि‍र 100 साल में 3 करोड़ की बढ़ोतरी के साथ 1901 में भारत की जनसंख्‍या 23 करोड़ हुई। …लेकिन अगले 100 वर्ष यानी 2001 में भारत की जनसंख्‍या 1 अरब से अधिक हो गई यानी इन 100 सालों में 77 करोड़ की वृदिध हुई। स्‍वाभाविक है सदियों सामाजिक, सांस्‍कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक झंझावातों में फंसी रही भारतीय नारी आजादी के तत्‍काल बाद आसमान में उड़ने की कुव्‍वत कहां से लाती। स्वतंत्रता प्राप्ति के दौरान भारत में राष्ट्रीय महिला साक्षरता दर 8.6% से कम थी। 2011 की जनगणना के अनुसार यह दर बढ़कर 64.63% हो गई है। बेशक, महिला साक्षरता दर में यह बढ़ोतरी संतोषजनक है, लेकिन दुर्भाग्य से इसका विपरीत पहलू भी है। भारत की वर्तमान महिला साक्षरता दर विश्व औसत 79.7% और पुरुष साक्षरता दर से बहुत कम है। ग्रामीण एवं आर्थिक रूप से कमजोर शहरी क्षेत्रों में स्थिति गंभीर है, जहां कम लड़कियां स्कूल जाती हैं और उनमें पढ़ाई को बीच में छोड़ देने की संख्‍या बहुत ज्‍यादा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में अभी भी लगभग 14.5 करोड़ लड़कियां-महिलाएं पढ़ने-लिखने में असमर्थ हैं। भारत दुनिया का इकलौता बड़ा देश है, जहां लड़कों से ज्यादा बच्चियों की मौत होती है। यूनिसेफ के अनुसार, बच्‍चों के सरवाइवल में लिंग अंतर वर्तमान में 11 प्रतिशत है।  आंकड़े लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए कम अस्पताल में दाखिले के साथ समुदाय के रवैये को दर्शाते हैं। इससे पता चलता है कि माता-पिता अक्‍सर लड़कों की बनिस्‍बत नवजात लड़कियों पर कम ध्यान देते हैं। आज आवश्यकता है कि सारे विश्व में बालिकाओं और महिलाओं को आगे बढ़ाएं और हज़ारों-लाखों वर्षों की मानव विकास प्रक्रिया, चिंतन धारा एवं जीवन- मूल्यों के आधार पर चलें, ताकि विश्‍व का कल्‍याण हो। 

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