जरा हटके

संतनगर की चौपाल

अजय तिवारी

छोटी सरकार, बड़ी सरकार

संतनगर में छोटी सरकार और बड़ी सरकार की चर्चा आम है। अभी तक हर मर्ज की दवा बड़ी सरकार के दरबार में मिलती थी, लेकिन अब छोटी सरकार सीधे मंत्री, शासन-प्रशासन तक लेकर जा रही है। छोटी सरकार के पीछे ताकत भले ही किसी की हो, लेकिन बड़ी सरकार का सालों से चला आ रहा तिलस्म टूटा है। नगर निगम चुनाव के बाद से उपनगर की भाजपाई सियासत में कई नए समीकरण सेट हुए हैं। स्थानीय स्तर पर एक पॉवर सेंटर तैयार हो गया है, इसकी वजह चुनाव में भितरघात से शह मात थी। गनीमत रही, वो एक वार्ड में मामूल अंतर से भाजपा जोन में बनी रही, नहीं तो कांग्रेस तीन पार्षदों के साथ नजर आती। छोटी सरकार को ऊर्जा मुख्यालय में बैठे एक माननीय से मिल रही है, जो बड़ी सरकार से कभी खुश नहीं रहे।

गजब की समरसता

पंचायत चुनाव में समरसता की सोच भले ही प्रदेश में देखने को मिली हो, लेकिन संतनगर में तो सालों से सामाजिक संगठनों में चली आ रही है। बंद कमरे में नियमों का पालन करते हुए चुनाव हो जाते हैं। कुछ की खबर अखबारों में आती है, चर्चाओं में आती हैं। ज्यादातर की तो जैसे थे-वैसे रहेंगे वाली होती है-वह भी बहुत खामोशी से। गजब की बात तो यह है कि यहां स्कूलों में बच्चों को लोकतंत्र से चुनने की प्रक्रिया से अवगत कराने के लिए मतदान से छात्र संघ चुना जाता है, लेकिन कभी चुनाव के  लिए चर्चा में रहने वाले सबसे पुराने पंचायती संगठन और व्यापारिक संगठन में भी निर्विरोध कार्यकाल बढ़ाने का फैसला लेने की तैयारी है।

रिटायर्डमेंट कब होगा

काम के लिए पद चाहिए और पद के लिए कोई उम्र नहीं… अच्छा है। युवाओं को संगठन में आगे बढ़ाने का विचार किसी स्तर पर नहीं हो रहा है। 60 पार चेहरे समाजसेवा का दमभर रहे हैं। उम्र के संध्याकाल में युवा सूर्योदय के प्रयास नहीं हो रहे हैं। एक नहीं, दो नहीं सभी में कामकाज बुजुर्ग हाथों में हैं। चलो अभी सब ठीक चल रहा है, लेकिन सेकंड लाइन तैयार नहीं की तो डगर आसान नहीं होगी। बुजुर्ग मार्गदर्शक बन सेकंड लाइन तैयार कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हैं। वजह कुर्सी मोह है और आभा मंडल बने रखने की चिंता।

पहले बसाने की बात हो

एक मुद्दा एक कार्यक्रम में उठा। समस्या कई दशकों पुरानी है, लेकिन उसे लेकर संघर्ष और प्रयास भी राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर ठीक वैसे चले रहे है, जैसे समस्या के लिए रोने की आवाज सिसकियों में बदल चुकी है। मुद्दे से प्रभावित होने वालों से कहा जा रहा है कुछ साल के लिए परेशानी झेल लीजिए, फिर आपकी रोजी रोटी वैसे ही चलने लगेगी जैसे अभी चल रही है। कोई यह बताने का तैयार नहीं है कि उस अंतराल में घर कैसे चलेगा। विकास यदि विरोध के साथ हो… उसमें ईमानदार कोशिश के परिणाम भी सुकून देने वाले सामने नहीं आते। मुद्दे के लिए जिसे अभियान चलाना है, वह एक सामाजिक संस्था है, जिसके खिलाफ वह खड़े हो जाएंगे जो उजाड़ने से पहले बसाने की बात कह रहे हैं।

चलते-चलते

हांडी पर चढ़ी है बड़ी खबर… बहुत जल्द संतनगर से कानूनी लड़ाई सामने आएगी। सुखियों में रहेगी, लेकिन एक बड़े नाम के सुकून भरे दिन पर घात हो सकता है.. चलो तक तक खामाेश रहते हैं।

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