मध्य प्रदेश कांग्रेस में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर बवाल: ‘पुराने चेहरों को तरजीह’ से कार्यकर्ताओं में असंतोष

मध्य प्रदेश कांग्रेस में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर बवाल: ‘पुराने चेहरों को तरजीह’ से कार्यकर्ताओं में असंतोष

भोपाल. BDC News

मध्यप्रदेश कांग्रेस द्वारा 71 शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद पार्टी में आंतरिक विरोध शुरू हो गया है। भोपाल, रायसेन और देवास सहित कई जिलों में कार्यकर्ताओं ने अपने पदों से इस्तीफा देना शुरू कर दिया है। इन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पार्टी नेतृत्व ने युवाओं और नए चेहरों को मौका देने के अपने वादे को पूरा नहीं किया और एक बार फिर पुराने व प्रभावशाली नेताओं को ही तरजीह दी गई है।

कार्यकर्ताओं का सवाल है कि अगर पुराने नेताओं को ही नियुक्त करना था, तो दो महीने तक ‘संगठन सृजन अभियान’ क्यों चलाया गया? भोपाल में, जिला अध्यक्ष पद के दावेदार मोनू सक्सेना ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी को प्रदेश नेतृत्व द्वारा गुमराह किया गया है और ऐसे लोगों को पद दिए गए हैं जो बीजेपी से जुड़े हुए हैं। उन्होंने भोपाल में प्रवीण सक्सेना को दोबारा अध्यक्ष बनाए जाने पर भी सवाल उठाया, यह कहते हुए कि प्रवीण और उनके भाई के बीजेपी के लोगों के साथ संबंध हैं। मोनू सक्सेना ने दावा किया कि उनके खिलाफ 78 केस दर्ज हैं और पटवारी घोटाले के खिलाफ आंदोलन में उनकी एक आंख भी चोटिल हुई थी। उन्होंने इन नियुक्तियों को जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की ‘हत्या’ बताया और कहा कि वे राहुल गांधी से मिलकर अपनी बात रखेंगे।

नियुक्तियों का विश्लेषण

कांग्रेस ने लंबे समय बाद ये नियुक्तियां की हैं। घोषित 71 नामों में से 6 विधायक, 11 पूर्व विधायक और 21 पुराने जिला अध्यक्षों को फिर से मौका मिला है। भोपाल में प्रवीण सक्सेना को शहर और अनोखी पटेल को ग्रामीण अध्यक्ष के रूप में दोबारा नियुक्त किया गया है। इन नियुक्तियों में 12 ओबीसी, 10 एसटी, 8 एससी, 3 अल्पसंख्यक और 4 महिलाओं को भी जगह दी गई है।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के समर्थकों को भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया है। सूची के अनुसार, कमलनाथ के 11 और दिग्विजय सिंह के 5 समर्थक (उनके बेटे जयवर्धन सिंह और भतीजे प्रियव्रत सिंह सहित) जिला अध्यक्ष बने हैं। इसके अलावा, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के 5 समर्थक भी जिला अध्यक्ष बनाए गए हैं, जिनमें भोपाल और इंदौर जैसे प्रमुख शहर भी शामिल हैं।

यह स्थिति दिखाती है कि भले ही कांग्रेस ‘संगठन सृजन’ के माध्यम से जमीनी स्तर पर बदलाव लाने का दावा कर रही हो, लेकिन नियुक्तियों में अभी भी पुराने और प्रभावशाली नेताओं का दबदबा कायम है, जिससे कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है। अब देखना यह होगा कि पार्टी इस असंतोष को कैसे संभालती है।

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