अजय तिवारी, एडिटर इन चीफ
- दुनिया में बहुत कुछ घट रहा है। ट्रंप ‘ट्रंप कार्ड’ फेंक रहे हैं। फेंकने के बाद उठा भी ले रहे हैं। अमेरिका फर्स्ट के नाम पर धमका भी रहे हैं। देशों को आपस में उलझा भी रहे हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और उनकी आक्रामक ‘टैरिफ नीति’ की आशंका ने दुनिया भर के भू-राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों में हलचल पैदा कर दी है। ट्रंप का मानना है कि आयात पर भारी शुल्क लगाकर वह अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बना सकते हैं, लेकिन यह वैश्विक व्यापार के लिए एक बड़ा खतरा है। उनकी इस नीति के कारण, विश्व स्तर पर खासकर एशिया में, एक नया संतुलन (समीकरण) बनता दिख रहा है।
भारत के लिए ट्रंप की यह नीति एक बड़ी चुनौती है, लेकिन साथ ही एक अवसर भी है। अमेरिका द्वारा रूस से तेल खरीदने पर भारत पर 50% का अतिरिक्त टैरिफ लगाना इसका सबसे ताजा उदाहरण है। यह कदम भारत पर दबाव बनाने की कोशिश है, ताकि वह रूस से दूर होकर अमेरिका के साथ अधिक व्यापार करे। लेकिन, भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई हालिया बातचीत इसका प्रमाण है, जिसमें दोनों नेताओं ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने की प्रतिबद्धता जताई।
ट्रंप की यह नीति भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब आने के लिए मजबूर कर रही है, क्योंकि दोनों ही देश अमेरिकी दबाव का सामना कर रहे हैं। इससे एशिया में एक नया आर्थिक और रणनीतिक गठबंधन उभर सकता है, जो अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है।
ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने यूरोपीय संघ और एशियाई देशों को भी अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया है। जापान, दक्षिण कोरिया और चीन व कई देश अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहे हैं, ताकि वे अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान को कम कर सकें। इससे एशिया में क्षेत्रीय आर्थिक ब्लॉक मजबूत हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे व्यापार युद्ध की स्थिति बन सकती है। यह भारत जैसे देशों के लिए भी एक मौका है कि वे अपने व्यापारिक साझेदारों का दायरा बढ़ाएं और रूस, यूरोपीय संघ और मध्य पूर्व जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करें।