पेरिस में छह पदक नहीं है गौरव का पल

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भूपेन्द्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

भारत ने पिछले दस वर्षों में नैतिक एवं बौद्धिक क्षमता, आर्थिक शक्ति, वैचारिक दृढ़ता तथा वैश्विक नेतृत्वता का प्रदर्शन करते हुए विश्व पटल पर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की है। वर्तमान में भारत विश्व की तीव्र गति से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था है। निकट भविष्य में डेढ़ अरब आबादी के साथ भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होगा। भारत दुनिया भर में शांति, सौहार्द एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाला अग्रणी देश है, जो 21वीं सदी में विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण देश बनने की दिशा में बढ़ रहा है। साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, स्पेस, मेडिकल, फाइनेंस, एजुकेशन फील्ड में भारत के पास अपार संसाधन एवं विश्व स्तरीय प्रतिभाओं का भंडार है।

विश्व में भारत किसी क्षेत्र में नंबर एक, किसी में दो, किसी में तीन, तो किसी में चौथे-पांचवे स्थान पर है। इस क्षमता, ऊर्जा के साथ भारत का पेरिस ओलंपिक 2024 खेलों में 71वां स्थान प्राप्त करना और 117 खिलाड़ियों की टीम द्वारा मात्र 6 (रजत-कांस्य) पदक जीतना देश की जनता को निश्चित रूप से हतोत्साहित करता है।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर ओलंपिक में भारत अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड, ब्रिटेन तो छोड़िए, जमैका, डोमिनिका, अर्मेनिया, किर्गिस्तान और लिथूनिया जैसे छोटे-छोटे देशों से भी नीचे है। सन् 1900 से लेकर 2024 तक भारत 25 ओलंपिक खेलों में कुल 40-41 पदक जीत पाया है। जबकि अमेरिका-चीन ने अकेले पेरिस ओलंपिक 2024 में ही 40-40 स्वर्ण पदक जीते हैं।

ओलंपिक खेलों में भारत की भागीदारी को 124 वर्ष हो गए हैं। सन् 1900 में पेरिस ओलंपिक खेलों में शामिल हुए भारत के एकमात्र खिलाड़ी नॉर्मन प्रिचर्ड ने रेस में 2 रजत पदक जीते थे। उसके बाद एंटवर्प, बेल्जियम ओलंपिक 1920 में भारत की 5 सदस्यीय टीम गई थी, जो बिना पदक लिए लौटी।

खैर, स्वतंत्रता पूर्व की स्थिति के प्रति हमारी खुशी-नाखुशी का विशेष महत्व नहीं है। स्वतंत्रता के बाद लंदन ओलंपिक 1948 में भारतीय हॉकी टीम ने स्वतंत्र भारत का पहला एवं अपना लगातार चौथा स्वर्ण पदक जीता।
सन् 1952 हेलसिंकी में भारत के पहलवान केडी जाधव ने कांस्य पदक जीतकर पहले एकल खिलाड़ी के रूप में ओलंपिक में भारत का खाता खोला। सन् 2000 सिडनी में पदक जीतने वाली कर्णम मल्लेश्वरी पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीता था। निशानेबाज अभिनव बिंद्रा 2008 बीजिंग में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी थे तथा टोक्यो 2020 में नीरज चौपड़ा ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता और 2024 पेरिस ओलंपिक में 117 खिलाड़ियों की टीम के साथ पहुंचा भारत 1 रजत एवं 5 कांस्य पदक जीतकर लाए, तो यह देश के लिए गौरवान्वित होने के पल नहीं, गहन चिंतन और मंथन का विषय है।

खिलाड़ी, खेल अकादमियां, खेल विभाग, शासन एवं प्रशासन… इन सभी को देश की जनता को बताना होगा कि क्या देश भारतीय हॉकी टीम द्वारा स्वतंत्रता के बाद जीते 5 स्वर्ण पदक, 2008 बीजिंग में 1 स्वर्ण पदक अभिनव बिंद्रा और 2020 टोक्यो में नीरज चौपड़ा द्वारा जीते 1 स्वर्ण पदक की माला का जाप करता रहेगा।
विश्व के कुल 195 देशों में से मात्र तीन देश- चीन, अमेरिका और इंडोनेशिया को छोड़कर, 193 देशों की जनसंख्या हमारे अकेले राज्य उत्तर प्रदेश से कम है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 25 करोड़ से अधिक है। ऐसी स्थिति में भारत का 71वे नंबर पर आना स्तब्ध कर देता है।

खेल क्षेत्र में भारत की यह दुर्दशा अकारण नहीं है। आईपीएल 2008 की गड़बड़ियां और कॉमनवेल्थ 2010 का 70,000/- घोटाले जैसे कारनामे उदाहरण हैं। स्वाभाविक है, खेलों में भारत का लंबे समय, निरंतर इतने निचले स्तर पर बने रहना है किसी बड़े गड़बड़झाले का संकेत है। इसके ठोस कारणों को खोजकर खेलों से संबंधित समूची रीति, नीति और व्यवस्था में परिवर्तन एवं सुधार की आवश्यकता है। खेल क्षेत्र एवं खिलाड़ियों को राजनीति से प्रभावित होने से बचाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं की अपार संभावनाएं हैं, किंतु ये प्रतिभाएं राजनीतिक दांव-पेंच के खेल में हारकर दब जाती हैं। भारतीय प्रबंधन को यह समझना होगा कि भारतीय खेल विभाग, खेल क्षेत्र एवं खेल प्रतिभाएं यदि राजनीतिक, सामाजिक कुचाल का शिकार होंगी, तो हमें ऐसे ही निराशाजनक परिणाम प्राप्त होते रहेंगे।

हमें यह भी समझना चाहिए कि भारतीय साख को बट्टा लगाने के लिए वैसे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोग (जिनमें भारतीय मूल के लोग अधिक शामिल होते हैं।) अपने-अपने स्तर पर हथियार लिए बैठे रहते‌ हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी एवं उनकी पत्नी इश्तर डुफेलो ने लिखा है कि ओलंपिक में भारत के दयनीय प्रदर्शन का कारण कुपोषण है। अभिजीत बनर्जी जेएनयू में पढ़ा है और वहां आंदोलन करने पर तिहाड़ जेल भी गया। प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीति, नोटबंदी एवं लगभग हर मामले में बुराई कर चुका है। विपक्ष के प्रति इसके विचारों में प्रगाढ़ उदारता प्रदर्शित होती है। कुपोषण के शिकार खिलाड़ी ओलंपिक से पूर्व होनेवाले खेलों एवं चयन प्रक्रिया को पार कर ओलंपिक टीम में कैसे शामिल हो जाते हैं, हमारी-आपकी समझ से परे है। यह नोबेल विजेता ही बता सकता है।

इसी प्रकार ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुपोषण की स्थिति युद्ध-ग्रस्त एवं अकाल-ग्रस्त यमन और सूडान से भी ख़राब है। यानी इन सबका मानना है कि भारत के खिलाड़ी कुपोषण से प्रभावित हैं, इसलिए उनमें जीतने की सामर्थ्य और शक्ति नहीं है। निःसंदेह अब ऐसे विरोधियों को उत्तर देने का समय आ चुका है। इसके लिए खेल नीति में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता के साथ क्षमतावान खिलाड़ियों को आगे आने के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, जिसका परिणाम देखने के लिए आपको लॉस एंजेलिस ओलंपिक 2028 का इंतजार करना होगा।

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