जरा हटके

अंग्रेज हुकूमत की नाक में दम कर रखा था दुल्हनोमलजी ने

आजादी के अमृत महोत्सव पर सिंध के स्वतंत्रता सेनानी दुल्हनोमल जसवानी को याद करते हैं। साल 1942 में अंग्रेजों ने 10 हजार का इनाम रखा था। सरदार पटेल और महात्मा गांधी के आग्रह पर वे भूमिगत हो गए थे। दुल्हनोमल जसवानी ने जांबाज कारनामों से अंग्रेज हुकूमत क नाक में दम कर रख था। देश की आजादी के लिए जबरदस्त संघर्ष किया


श्री दुल्हनोमल जसवानी स्वतंत्रता सेनानी

उनका जन्म 15 अप्रेल 1917 को अखंड भारत के गांव मोरो, जिला नवाबशाह सिंध में हुआ। वे 10 साल की उम्र से ही वे आजादी आंदोलन में कूद पड़े। अंग्रेज सरकार ने 1942 में उन पर जिंदा या मुर्दा पकड़ कर सरकार के हवाले करने पर 10 हजार का इनाम घोषित किया था। लेकिन वे गौरी हुकुमत के हाथ नहीं लगे। उस समय महात्मा गांधी एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल के आग्रह पर वे अंडर ग्राउंड हो गए , तथा भूमिगत होकर अंग्रेजों के खिलाफ अपनी देश को आजाद कराने की गतिविधियां जारी रखी साथ ही साथ सिंधी भाषा में क्वीट इंडिया अखबार निकाला।
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तब लोगों के सामने आए। अंग्रेजी हुकुमत ने ही उनको स्पेशल ट्रेन दी जिसमें सभी सिंधी हिंदुओं को लेकर राजस्थान के देवली कैंप आए बाद में उसी ट्रेन से वापस पाकिस्तान गए और अपनी फैमिली तथा रिश्तेदारों को देवली कैंप लगाए। 1949 में भोपाल के बैरागढ़ पहुंचे और यहीं बस गए। भारत की स्वतंत्रता के समय उस समय के कांग्रेसी नेताओं ने आजाद भारत में सिंधियो के लिए अलग प्रदेश बनाने सहितसुविधाओं के जो अन्य वायदे किए थे, उनसे मुकर जाने के कारण नफरत हो गई और उन्होंने कांग्रेस को अलविदा करते हुए भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के झण्डे तले अपनी सेवाएं जारी रखी। उन्होंने भोपाल विलीनीकरण आंदोलन में भी हिस्सा लिया।

शहीद गेट पर अंकित है नाम
भोपाल में परिपार्क के समीप बने शहीदी गेट पर स्थापित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में भी दुल्हनोमल जसवानी का नाम अंकित है। उन्हें हर माह केंद्र तथा राज्य सरकार की तरफ से सम्मान निधि मिलती थी। इतना ही नहीं आजादी आंदोलन में जबरदस्त भूमिका निभाने वाले जयरामदास दौलतराम जो बाद में राज्य सभा सांसद बने उन्होंने दुल्हनोमल जसवानी को मध्यप्रदेश का इस बात के लिए प्रभारी नियुक्त किया कि जिस व्यक्ति की वे अनुशंसा करेंगे, उसीको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र दिया जाएगा। इसी प्रमाण पत्र के आधार पर बाद में केन्द्र एवं प्रदेश सरकार सम्मान निधि देने का निर्णय करती थी।

रहे नोटीफादट ऐरिया कमेटी के सदस्य
आज का संत हिरदाराम नगर पहले बैरागढ़ के नाम से जाना जाथा, और 1973 तक यहां नगर पालिका की तरह नोटी फाईट ऐरिया कमेटी के हाथों में स्थानीय प्रशासन रहा। इस कमेटी में उस समय सरकार द्वारा विभिन्न राजनीतिक दलों के 5 सदस्यों को नामीनेट किया जाता था। 1973 तक इस कमेटी में अन्य चार सदस्यों खमीनदास नरियानी, लधाराम नरियानी, हूंदराजमल खादीवाला एवं किशनचंद चांद के अलावा दुल्हनोमल जसवानी भी सदस्य थे। जिन्होंने बैरागढ़ के विकास तथा समस्याओं के निराकरण के लिए समुचित प्रयास किए।

जाबांजी से जिया जीवन
सच्चाई की राहत पर चलते हुए दुल्हनोमल जसवानी ने अपना सम्पूर्ण जीवन निडरता, निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण भाव से बिताया और जीवनभर अपनी बात बिना किसी लाग लपेट के पूरी डेरिंग व डेशिंग के साथ देश तथा समाज के सामने रखी। देश के इस महान व्यक्तित्व का 01 फरवरी 1991 को अवसान हुआ। हमें उनकी संतान होने पर गर्व है। ऐसी महान शक्सियत को कोटि कोटि नमन।

– सुरेश जसवानी की कलम से

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