जंबूरी मैदान…. जनजातीय नायकों के जीवन गाथा सुनाती प्रदर्शनी
भोपाल। 14 नवंबर 2021
चलिए ले चलते हैं… गौरव दिवस पर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर राजधानी के जंबूरी मैदान में लगी जनजातीय नायकों की प्रदर्शनी की… जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी 15 नवंबर को भोपाल प्रवास के दौरान देखेंगे….
बिरसा मुंडा
- मुंडा विद्रोह के नेतृत्वकर्ता बिरसा मुंडा का जन्म नवंबर 1870 में हुआ था।
- 1 अक्टूबर 1994 को बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडाओं ने अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिए आंदोलन किया।
- 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में 2 साल के कारावास की सजा दी गई।
- कारावास से मुक्त होने के पश्चात उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का आवाहन किया जो मार्च 1900 में उनकी गिरफ्तारी तक सतत रूप से चलता रहा।
- कारावास में दी गई यातनाओं के कारण जून 1900 को रांची के कारावास में उनकी जीवन यात्रा समाप्त हुई।
शंकर शाह
- गढ़ा मंडला के पूर्व शासक और महान संग्राम शाह के वंशज शंकर शाह एक अप्रतिम क्रांतिकारी थे, जो युद्धकला में पारंगत होने के साथ ही साथ काव्य रचना में भी सिद्धहस्त थे।
- उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया और 18 सितंबर 1857 को जबलपुर में वीरगति को प्राप्त हुए।
रघुनाथ शाह
- राजा शंकर शाह के पुत्र और गढ़ा मंडला के शौर्य के ध्वज वाहक रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया।
- जबलपुर स्थित ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए प्रेरित किया जिसने इस क्षेत्र के अंग्रेजों के हृदय में भय का संचार कर दिया।
खाज्या नायक
- खाज्या नायक ने 1856 से अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह छेड़ दिया और एक बड़ी सेना एकत्र की,बड़वानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में खाज्या का प्रभाव फैल गया।
- 1857 की क्रांति के समापन के बाद भी खाज्या नायक ने ब्रिटिश शासकों को चैन नहीं लेने दिया।
- नायक धोखे का शिकार हुए और अक्टूबर 1860 को वीरगति को प्राप्त हुए।
सीताराम कंवर
- 1857 की क्रांति के दौरान होलकर और बड़वानी राज्य के नर्मदा पार के क्षेत्र, जिनमें आज का निमाड़ क्षेत्र सम्मिलित है, में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़े विद्रोह का नेतृत्व सीताराम कंवर ने किया।
- कंवर ने सतपुड़ा श्रेणी के भीलों को विदेशी शासन उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया और पेशवा तथा तात्या टोपे के साथ गहन संपर्क स्थापित किया।
भीमा नायक
- तत्कालीन बड़वानी के पंचमोहली क्षेत्र में जन्में भीमा नायक ने 1857 की क्रांति के दौरान ब्रिटिश शासन को गंभीर चुनौती प्रस्तुत की
- भीमा नायक का प्रभाव पश्चिम में राजस्थान के क्षेत्रों से लेकर पूर्व में नागपुर तक फैल चुका था।
- 1867 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अभियोजन में दोष सिद्ध करार दे दिए जाने के पश्चात पोर्टब्लेयर भेज दिया गया जहाँ 29 दिसम्बर 1876 में उन्होंने आखिरी साँस ली।
रघुनाथ सिंह मंडलोई
- रघुनाथ सिंह मंडलोई ने जो कि टांडा बरूद के निवासी थे और स्थानीय भील एवं भिलाला समुदाय के प्रतिष्ठित नेतृत्वकर्ता थे, ने अंग्रेजी शासन के विरूद्ध हुए एक विद्रोह का नेतृत्व किया।
- अंग्रेजी कम्पनी की सेना ने इन्हें अक्टूबर 1858 में बीजागढ़ के किले में घेर लिया और बंदी बना लिया गया।
सुरेन्द्र साय
- सुरेन्द्र साय ने 18 वर्ष की आयु से जीवनपर्यन्त अंग्रेजों के कुचक्रों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया।
- 23 जनवरी 1809 में संभलपुर के निकट खिंडा में जन्म लेने वाले सुरेन्द्र साय ने गोंड और बिंझल जनजातीय समुदायों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी
- 1862 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले के असीरगढ़ किले में कैद करके रखा गया, जहाँ 23 मई 1884 को इस महान वीर ने अपनी अंतिम साँस ली।
टंट्या भील
- प्रसिद्ध क्रांतिकारी टंट्या भील ने कई वर्षों तक ब्रिटिश शासन को चैन की साँस नहीं लेने दी और उनके लिए एक चुनौती बने रहे।
- 1874 से अपनी गिरफ्तारी तक ब्रिटिश शासन के खजानों को लूटकर गरीब जनता में बांट देते थे।
- जीवन के अंतिम समय में गिरफ्तार कर लिये गये।
- ब्रिटिश शासन ने 19 अक्टूबर 1889 को मृत्युदण्ड दिया।
मंशु ओझा
- 1942 के ऐतिहासिक भारत छोड़ो आन्दोलन में बैतूल के मंशुओझा ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अनेक क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।
- नवम्बर 1942 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 20 जुलाई 1944 तक नरसिंहपुर जेल में कैद रखकर कठोर यातनाएं दी गई।
- 28 अगस्त 1981 को घोड़ाडोंगरी जिला बैतूल में उनका देहावसान हुआ।
जनजातीय वीरांगना
रानी दुर्गावती
- 5 अक्टूबर 1524 को जन्मीं रानी दुर्गावती भारत की प्रसिद्ध वीरांगना थीं,
- उन्होंने मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में शासन किया उनका राज्य गढ़मंडला था,जिसका केंद्र जबलपुर था।
- अपने पति गौड़ राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया।
- वे इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ़ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।
टुरिया शहीद मुड्डे बाई
- टुरिया शहीद मुड्डे बाई ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जंगल कानून भंग करने का नेतृत्व किया।
- सिवनी जिले के टुरिया ग्राम में जंगल सत्याग्रह के दौरान अत्याचारी ब्रिटिश शासन के दमन के चलते 9 अक्टूबर 1930 को मुड्डेबाई शहीद हो गईं।
- इनके साथ ही साथ इसी ग्राम की रैनो बाई और बिरजू भोई भी इस गोलीकाण्ड में शहीद हुए।