जनहित के मुद्दे हाशिये पर, सड़कों पर ‘वोट बचाओ’ का ड्रामा

जनहित के मुद्दे हाशिये पर, सड़कों पर ‘वोट बचाओ’ का ड्रामा

BDC News अजय तिवारी, एडिटर इन चीफ

आज संसद से लेकर सड़कों तक जो नजारा देखने को मिला, वह भारतीय राजनीति की नई विडंबना को उजागर करता है। देश के करीब 300 विपक्षी सांसद, जिनमें बड़े-बड़े दिग्गज नेता शामिल हैं, “वोट चोरी” और वोटर वेरिफिकेशन के कथित आरोपों को लेकर सड़क पर उतर आए। इनका प्रदर्शन ऐसा था, मानो देश के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा हो और इसे बचाने की जिम्मेदारी केवल इन्हीं के कंधों पर हो। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मार्च सच में लोकतंत्र की रक्षा के लिए था, या सिर्फ एक राजनीतिक ड्रामा जिसका मकसद अपनी हार का ठीकरा किसी और पर फोड़ना है?

यह बेहद हास्यास्पद है कि जिस देश में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली जैसे अनगिनत मुद्दे आम जनता के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं, वहां विपक्ष “वोट चोरी” जैसे आरोप लेकर सड़कों पर उतरता है। क्या इन नेताओं को याद नहीं कि पिछले दिनों देश में एक भयानक ट्रेन दुर्घटना हुई, जिससे सैकड़ों परिवारों का जीवन तबाह हो गया? क्या उन्हें कभी यह याद नहीं आया कि देश के किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है? क्या देश के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने पर इन सांसदों ने कभी इस तरह की एकजुटता और ऊर्जा दिखाई है?

लेकिन जनहित के मुद्दे उठाने के लिए संसद में बहस करने की मेहनत कौन करे, जब कैमरे के सामने धरने पर बैठने और बैरिकेडिंग फांदने का नाटक करके सस्ती लोकप्रियता हासिल की जा सकती है? आज, जब टीएमसी सांसद मिताली बाग बेहोश हो गईं, तो राहुल गांधी जैसे नेता उनकी मदद के लिए आगे आए। यह मानवीयता का एक अच्छा उदाहरण है, लेकिन सवाल यह है कि यही संवेदनशीलता क्या उन हजारों लोगों के लिए दिखाई जाती है, जो अस्पतालों में बेड और दवाइयों के अभाव में दम तोड़ रहे हैं?

विपक्ष का यह मार्च केवल एक चुनावी हार की खीझ को दर्शा रहा है। जब तक वे सत्ता में रहते हैं, तब तक ईवीएम और चुनाव आयोग पर भरोसा रहता है, लेकिन जैसे ही हार होती है, उन्हें “वोट चोरी” और “लोकतंत्र खतरे में” जैसी बातें याद आने लगती हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे यह कह रहे हैं कि सभी दलों से 30 सांसद चुनना असंभव है, तो वहीं उनकी पार्टी के एक और नेता यह कहते हैं कि सांसदों को चुनाव आयोग के दफ्तर तक जाने की आजादी नहीं है। ये बयान विरोधाभासों से भरे हुए हैं और साबित करते हैं कि यह पूरा प्रदर्शन एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सिर्फ अराजकता पैदा करना है।

आज के प्रदर्शन से यह साफ हो गया है कि विपक्ष के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं है। वे केवल सरकार पर हमला करने और अपनी विफलता को छिपाने के लिए बेतुके आरोपों का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में यह जनता को तय करना है कि क्या उन्हें ऐसे नेताओं का समर्थन करना चाहिए जो जनहित के मुद्दों को छोड़कर सिर्फ राजनीतिक नाटक में व्यस्त हैं।

और अंत में…

उस बंदर की तरह है विपक्ष का रवैया जो इस पेड़ उस पेड़ पर, उस पेड़ से इस पेड़ पर उछल कूंद मचा रहा है. भरोसा दिलाया है शेर की सत्ता को चुनौती देने के काबिल है. और अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं रख रहा है।

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