विश्व की दो महान हस्तियों की जन्म शताब्दी एक साथ
सुरेश आवतरामानी
विश्व की दो महान हस्तियों मोहम्मद रफी की आज जन्म शताब्दी दिवस है। वे 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर के पास के गांव कोटरा सुल्तान में पैदा हुए थे । भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म भी 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था । दोनों शख्सियतों ने केवल भारत ही नहीं समूचे विश्व में अपने अपने क्षेत्र में ख्याति अर्जित की ।
रफी का देहावसान भले ही 44 वर्ष पहले हो गया हो लेकिन आज भी वें विश्व के करोड़ो गीत-संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते हैं । देश विदेश के हजारों रेडियो चैनल्स पर कार्यक्रमों की शुरूआत मो. रफी के गीत संगीत के साथ होती है तथा करोड़ो संगीत प्रेमी उनके गीतों का प्रतिदिन रसास्वादन करते हैं । मो. रफी द्वारा अनेक फिल्मों में गाये हुए गीत लोगों के स्मृति पटल पर हमेशा ताजा रहते हैं । हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम काल वर्ष 1951 से 1980 तक के नामचीन अभिनेताओं की फिल्मों में मो. रफी के गीत शामिल होते थे । स्वयं गायक किशोर कुमार ने भी एक फिल्म में मो. रफी की आवाज़ ली थी । चिकित्सा विज्ञान में विशेषज्ञ डॉक्टरों का मानना है कि मरीजों के आधुनिक चिकित्सा पद्धति से इलाज से ही केवल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होता है । जो मरीज गीत संगीत सुनने के आदी होते है उनके लिये म्यूज़िक थैरेपी भी उनके इलाज से कमतर नहीं होती हैं । इसलिए मनोचिकित्सक बहुत सी बीमारियों में विशेषकर अवसाद ग्रस्त मरीजों को सुमधुर संगीत सुनने की सलाह देते हैं ।
मो. रफी की विशेषता यह थी कि वे अलग-अलग कलाकारों के संवाद अदायगी और आवाज़ को समझकर उनके अनुसार ही गीत गाते थे । फिर भले ही वों शम्मी कपूर हों या जॉनी वाकर । मो. रफी इन कलाकारों की स्टाइल को समझते थे और उनके मुताबिक ही गीत गाते थे । इसलिये अनेक बार दर्शक समझ ही नहीं पाते थे कि इस गीत में पार्श्व गायन किसी अन्य व्यक्ति का है । वैसे रफी का सबसे कठिन गीत कोहिनूर फिल्म का ”मधुबन में राधिका नाचे“ माना गया है ।
अटल बिहारी वाजपेयी एक दिन छोटे थे रफी से
अटल बिहारी वाजपेयी
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ख्याति भी समूचे विश्व में फैली हुई है । उनकी विदेश नीति के चर्चे प्रायः होते हैं । अटल बिहारी वाजपेयी दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे । उनके कालखण्ड में बाहरी देशों के साथ भारत के सम्बंध काफी अच्छे रहें हैं । राजनीति में उनके विरोधी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी एक बार अटल जी को कहा था कि वे कभी न कभी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे । आज जब विभिन्न राजनैतिक दलों के परस्पर सम्बंधों में कटुता दिखती है, ठीक उसके उल्टे अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में भाजपा की कटर विरोधी पार्टी कांग्रेस के अनेक सदस्य भी अंदरूनी तौर पर अटल जी से कटुता नहीं रखते थे । आज भी पुराने लोग परस्पर चर्चा में यह स्वीकार करते हैं कि अटल जी के विरोधी भी सदन में उनके भाषणों को बड़े चाव से सुनते और सराहते थे । वाकपटुता अटल जी के वक्तृत्व गुणों में शामिल थी । वर्ष 1996 में केवल एक वोट से संसद में बहुमत सिद्ध न कर पाने के समय उन्होंने जो भाषण दिया था, वह भाषण पीढ़ियों के लिये अब भी नज़ीर माना जाता हैं ।
सरकार चाहे किसी भी राजनैतिक दल की क्यों न हो, विपक्षी दल हमेशा महंगाई का रोना रोते हैं । लेकिन अटल जी के समय महंगाई पर जो नियंत्रण था उसको लोग आज भी याद रखते हैं । आज जो सोना 76000 रू.. का दस ग्राम है । वर्ष 2003 में अटल जी के समय केवल 4100 रू. का दस ग्राम मिल जाता था । नदी जोंड़ो योजना और सड़कों का जाल बिछाने के लिये चलाई गई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, कारगिल युद्ध में भारत की जीत आदि अटल जी के कुछ ऐसे काम थे जो लोगों की स्मृतियां से कभी भी ओझल नहीं होते हैं ।