विशेष: जान न्योछावर कर हासिल की थी हमारे लिए आजादी

विशेष: जान न्योछावर कर हासिल की थी हमारे लिए आजादी

BDC News. आलेख प्रभाग

भारतीय स्वाधीनता संग्राम केवल अहिंसक आंदोलनों का ही इतिहास नहीं है, बल्कि यह उन महान क्रांतिकारियों के बलिदान और साहस की भी गाथा है, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने का सपना देखा था। इन क्रांतिकारियों ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग चुना और ब्रिटिश हुकूमत को अंदर तक हिलाकर रख दिया।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु

भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रतिष्ठित क्रांतिकारियों में से हैं। इन तीनों ने मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई साहसिक कदम उठाए। 1928 में, इन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की, जो लाला लाजपत राय की मौत का बदला था। इसके बाद 1929 में, इन्होंने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका, जिसका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि बहरी ब्रिटिश सरकार तक अपनी आवाज पहुँचाना था। “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे को इन्होंने ही लोकप्रिय बनाया। 23 मार्च 1931 को इन तीनों को फाँसी दे दी गई, और ये देश के युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतीक बन गए।

चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों को कभी भी जिंदा हाथ नहीं आने दिया। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के प्रमुख नेता थे। काकोरी ट्रेन डकैती (1925) में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। 1931 में, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में, जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली, ताकि वे अंग्रेजों के हाथों पकड़े न जा सकें। उनके इस बलिदान ने पूरे देश में क्रांति की लहर पैदा कर दी।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को छोड़ दिया और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, अंग्रेजों से लड़ने के लिए ‘आजाद हिंद फौज’ (INA) का गठन किया। उन्होंने अपनी सेना के साथ भारत की सीमाओं पर अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। उनका मानना था कि केवल सशस्त्र क्रांति से ही भारत को आजादी मिल सकती है।

राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान

राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान दोनों घनिष्ठ मित्र थे और काकोरी कांड के मुख्य नायकों में से थे। बिस्मिल ने “सरफरोशी की तमन्ना” जैसी देशभक्ति की कविताएँ लिखीं, जो क्रांतिकारियों के बीच जोश भरती थीं। दोनों को काकोरी कांड में दोषी ठहराया गया और 1927 में फाँसी दे दी गई। इनकी दोस्ती और देश के लिए दिया गया बलिदान आज भी सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है।

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