संतजी के सेवा की कैनवास पर खींची रेखाओं का अक्श हैं सिद्धभाऊजी
अजय तिवारी
जन्म दिन पर विशेष 23 दिसंबर
संतजी ने कैनवास पर सेवा के लिए जो रेखाएं खींची, उसका अक्श हैं सिद्धभाऊजी। कुटिया के हर पाठ का क, ख, ग जो अपने गुरूजी (संत हिरदारामजी साहिब) सिद्धभाऊजी ने पढ़ा था। उसे उन तक पहुंचाया, जिन तक पहुंचाने की सीख गुरूजी ने दी थी। बच्चे, बूढ़े और बीमारों के लिए सिद्धभाऊजी संतजी की छाया के रूप में नजर आते हैं। संतजी के ब्रह्मलीन होने के बाद संतजी की हर शाखा मजबूत करना सिद्धभाऊजी का लक्ष्य रहा है।
बात कहां से शुरू करूं… सेवासदन में भर्ती रोगियों से, जहां शिविर में इलाज करने आए लोगों से रात के वक्त पूछने पहुंच जाते हैं- कोई तकलीफ तो नहीं या बच्चों के बीच जाकर उन्हें समझाते हैं, माता-पिता, गुरूजनों का सम्मान करो सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी। बच्चों की परीक्षा आने से पहले पेपर किस तरह हल करना है, पढ़ाई किस तरह करने है बताने भाऊजी हर स्कूल में पहुंचते हैं, जो बच्चा खुद को पढ़ाई में साबित करता है, उसे चेक देते हैं। अभिभावकों का सम्मान करते हैं बच्चे की कामयाबी। बच्चों के बीच सिद्धभाऊजी जब भी पहुंचते हैं ऐसा लगता है वे परम आनंद में डूबे हुए हैं।
बहुत से आयाम है सिद्धभाऊजी के
कुटिया का आशीर्वाद लेने आने वाले समाजसेवी, शासन-प्रशासन में पदों पर बैठे लोगों से बस यही कहते हैं। संतनगर का विकास करो, अपनी राह पर आगे बढ़ते रहोगे। संतजी के सेवा प्रकल्पों का संचालन एक प्रशासक के रूप में करते हुए वह सीईओ की तरह होते हैं, लेकिन ऐसे सीईओ जो सेवा के कारबे को उनका अहसास कराता है।
आदर्शों की पाठशाला हैं
भाऊजी का जीवन अनुकरणीय है। एक पाठ है जो दूसरों के लिए कुछ करने का जुनून पैदा करता है। उनका स्वभाव, उनकी दिनचर्या, हर पल दूसरों के लिए सोचने- करने की प्रेरणा देती है। किसी को दुखियों के आंसू पौंछना सीखना हो तो भाऊजी से सीखे।
बुद्धिजीवी क्या सोचते हैं
बुद्धिजीवियों का कहना है संतजी ने जो पौधा लगाया था, उसको आगे बढ़ाने में सिद्धभाऊजी रात दिन लगे हुए हैं, उन्होंने संतजी की गद्दी के साथ पूरा न्याय किया है। संतनगर को शिक्षा का हब बनाया है। खासकर संतनगर की बालिकाओं की दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करने की मजबूरी को खत्म किया है। केजी से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षा संस्थान की श्रंखला खड़ी की। मेरा मानना है कि भाऊजी ने अपना पूरा जीवन संतनगर को समर्पित कर दिया है।
धूप, हवा और पानी के मायने बताए
प्रकृति चिकित्सा को लोगों तक पहुंचाने के लिए आरोग्य केन्द्र में हर माह लगने वाले रोग निवारण एवं प्रशिक्षण शिविर के अनुभव सत्र में सिँद्धभाऊजी हमेशा पहुंचते हैं। कहते हें- साधकों निरोगी काया आप पर निर्भर है। खुद के डॉक्टर खुद बनो। खुद स्वस्थ रहो, दूसरों को भी स्वस्थ रहने में मदद करो। आपकी दिनचर्या, आपका खानपान आपके स्वस्थ्य रहने की गारंटी है। दवा मुक्त भारत अभियान हैं रोग निवारण शिविर।
मांसाहार आपका आहार नहीं
जब दादा वासवानी को याद करने का मौका है। भाऊजी बच्चों के बीच जाकर समझाते हैं- मांस मनुष्य का आहार नहीं है। मांसाहार यानी बीमारियों को न्योता देना है। मानव शरीर की प्रकृति मांसाहार की नहीं है। आहार विचारों को प्रभावित करता है। जीव जंतुओं की हत्या पाप है। फल, हरी सब्जियाँ शरीर की हर जरूरत की पूर्ति करती हैं। उनका शकाहार को लेकर अभियान बच्चों में शाकाहार का संस्कार रोपित करना है।
समग्र व्यक्तित्व के धनी है सिद्धभाऊजी
सिद्धभाऊजी ने प्रखर वक्ता हैं। कुशल प्रशासक हैं। सेवाभावी व्यक्तित्व के धनी हैं। संतजी के जीवन से समग्रता का पाठ बेहद खामोशी से पढ़ा, लेकिन बहुंत दृढ़ता के साथ उस पर न केवल चल रहे है, बल्कि समाज बदले, इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। उनके प्रयासों में लक्ष्य हासिल करने का जो जज्बा है, वह उनके सेवाधारियों में भी नजर आता है, जो कार्य हाथ में लेते हैं, वह न केवल लक्ष्य हासिल करता है, बल्कि उससे कहीं अधिक हासिल करता है।
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