निर्जला एकादशी 2025: व्रत कथा, विधि और महत्व – मिलेगा 24 एकादशी का फल
निर्जला एकादशी, जिसे भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है। यह सभी एकादशियों में सबसे कठिन मानी जाती है क्योंकि इसमें जल तक का सेवन वर्जित होता है, इसलिए इसे ‘निर्जला’ या ‘बिना जल के’ एकादशी कहते हैं।
निर्जला एकादशी को क्यों कहते हैं भीमसेन एकादशी? (पौराणिक कथा)
पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में महाबली भीमसेन अपनी असीमित भूख के कारण पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते थे। अपनी इस समस्या को उन्होंने महर्षि वेदव्यास जी के समक्ष रखा। वेदव्यास जी ने उन्हें बताया कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली इस विशेष एकादशी का व्रत करने से उन्हें वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल एक साथ मिल जाएगा। इस एक व्रत को निष्ठा से करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भीमसेन ने व्यास जी की सलाह मानकर यह कठिन निर्जल व्रत रखा, और तभी से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाने लगा।
निर्जला एकादशी व्रत विधि:
निर्जला एकादशी का व्रत बहुत कठोर होता है, जिसमें अन्न और जल दोनों का त्याग किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है:
- व्रत का संकल्प: व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को शुद्ध करके भगवान विष्णु के सामने पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करने का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु का पूजन: भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। उन्हें गंगाजल से अभिषेक करें, पीले फूल, फल, तुलसी के पत्ते और अक्षत अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और धूप करें।
- मंत्र जाप और कथा श्रवण: भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें, विष्णु चालीसा का पाठ करें और निर्जला एकादशी व्रत की कथा सुनें।
- दान-पुण्य: इस दिन दान का विशेष महत्व है। जल से भरे घड़े, शरबत, अनाज, वस्त्र और फल आदि का दान करना शुभ माना जाता है। गर्मी के मौसम को देखते हुए, प्याऊ की व्यवस्था करना या राहगीरों को पानी पिलाना बहुत पुण्य का काम माना जाता है। पशु-पक्षियों के लिए पानी का इंतजाम करना भी विशेष फलदायी होता है।
- सावधानियां: व्रत के दौरान तामसिक भोजन (जैसे प्याज, लहसुन, मांस) से बचें। क्रोध, झूठ बोलना, द्वेष और अपशब्दों के प्रयोग से दूर रहें। शारीरिक मेहनत वाले काम और थकान से बचें।
- पारण: एकादशी व्रत का पारण अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दान देकर ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।
निर्जला एकादशी 2025 कब है?
इस वर्ष (2025) निर्जला एकादशी 06 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जा रही है। कुछ वैष्णव संप्रदाय के लोग इसे 07 जून को भी मनाते हैं। एकादशी तिथि की शुरुआत 06 जून को प्रातः 2:15 बजे से हो रही है और इसका समापन 07 जून को प्रातः 4:47 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार, 06 जून को व्रत रखना मान्य है।
यह व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि इसे करने से वर्ष भर की सभी 24 एकादशियों का फल एक साथ मिलता है, और मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।