BDC News. धर्म प्रभाग
छत्तीसगढ़ की अनूठी संस्कृति और परंपराओं में एक खास जगह है कुत्ते का मंदिर, जिसे लोग पूजते हैं। यह मंदिर बालोद जिले के खपरी गांव में स्थित है, जो स्थानीय लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा दिखाती है कि कैसे यहां के लोग जानवरों के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव रखते हैं।
मंदिर की कहानी: वफादारी और कुर्बानी की मिसाल
यह मंदिर एक ऐसे कुत्ते की याद में बनाया गया है, जिसने अपने मालिक के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। कहा जाता है कि एक बार एक मालिक और उसके कुत्ते के बीच गलतफहमी हो गई। मालिक को लगा कि कुत्ते ने उसे धोखा दिया है और उसने गुस्से में आकर उसे मार दिया। बाद में जब मालिक को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह बहुत दुखी हुआ और उसने कुत्ते की याद में एक मंदिर बनवाया।
यह कहानी वफादारी और बलिदान की मिसाल बन गई, और तब से इस जगह को पवित्र माना जाने लगा। स्थानीय लोग और दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु यहां आकर कुत्ते की मूर्ति की पूजा करते हैं और मन्नतें मांगते हैं।
मंदिर की संरचना और महत्व
इस मंदिर में एक विशाल चबूतरे पर कुत्ते की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के पास ही एक तालाब भी है, जो इसकी पवित्रता को और बढ़ाता है। लोग यहां प्रसाद चढ़ाते हैं, धूप-दीप जलाते हैं और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना करते हैं।
स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा करने से उनके जानवरों को किसी तरह की बीमारी नहीं होती और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह इंसानों और जानवरों के बीच के गहरे रिश्ते का भी प्रतीक है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में जानवरों का सम्मान
यह मंदिर छत्तीसगढ़ की उस संस्कृति को दर्शाता है, जहाँ प्रकृति और सभी जीवों का सम्मान किया जाता है। यहाँ लोग केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी परिवार का हिस्सा मानते हैं। यह मंदिर एक ऐसा उदाहरण है, जो सिखाता है कि विश्वास और सम्मान की भावना किसी भी जीव के लिए हो सकती है, चाहे वह इंसान हो या जानवर।
आज भी, यह मंदिर अपनी कहानी और आस्था के साथ जीवंत है, और हर साल यहाँ बड़े उत्सव और मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।