केवल जागरूक और सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित

केवल जागरूक और सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

आज के डिजिटल युग में आर्थिक व्यवहार या खरीदारी तो आसान हो गयी, लेकिन उसी मात्रा में धोखाधड़ी, बनावट उत्पाद, मिलावटखोरी और साइबर अपराध भी हद से ज्यादा बढ़ गए। दूसरों पर अंधा भरोसा, दिखावा, भ्रामक विज्ञापन, झूठे वादे पर विश्वास न करके अपने विवेकबुद्धि का इस्तेमाल करें, निति-नियम, कानून का पालन करें, तभी हम जागरूक उपभोक्ता बन पायेंगे। उपभोक्ता पैसे के बदले में किसी वस्तु या सेवा का लाभ प्राप्त करता है, तो उसे कीमत तुल्य सही उत्पाद मिलना चाहिए। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत उत्पाद के बारे में महत्वपूर्ण अधिकार मुख्य रूप से सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चयन का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, शिकायतों के निपटारे का अधिकार और ग्राहक जागरूकता का अधिकार यह छह हैं। इसको विस्तार से जानते है, इसमें जान और संपत्ति के लिए खतरनाक उत्पाद और सेवाओं की मार्केटिंग से सुरक्षा। गलत व्यापार के तरीकों से बचाने के लिए सामान, उत्पाद या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक, कीमत के बारे में सूचना पाने का अधिकार। प्रतियोगितात्मक कीमतों पर अलग-अलग तरह के सामान, उत्पाद और सेवाओं तक पहुंच का अधिकार। सही फोरम में उपभोक्ता के हितों पर योग्यतानुसार विचार किए जाने का अधिकार। गलत व्यापार के तरीकों या ग्राहकों के शोषण के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार। एक जानकार उपभोक्ता बनने के लिए जरूरी ज्ञान और कौशल हासिल करने का अधिकार।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 इसके साथ कई खास नियम और कानून भी हैं, जैसे उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 और केंद्रीय व राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों को नियंत्रित करने वाले अधिनियम। ये अलग-अलग अधिनियम मिलकर उपभोक्ता को गलत तरीकों, उत्पाद और सेवा में खराबी से सुरक्षा का काम करती हैं। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण एक कानूनी संस्था है, जिसे एक्ट के तहत उपभोक्ता अधिकारों को एक क्लास के तौर पर बढ़ावा देने, उनकी सुरक्षा करने और उन्हें लागू करने के लिए बनाया गया हैं। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग विवाद सुलझाने के लिए तीन स्तरीय संरचना प्रदान करता है, जिला स्तरीय – 50 लाख रुपये तक, राज्य – 50 लाख से 2 करोड़ रुपये तक और राष्ट्रीय आयोग – 2 करोड़ रुपये से अधिक का विवाद।

उत्पाद दायित्व अधिनियम यह उत्पाद की अवधारणा लाता है, जो निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता को उनके खराब उत्पाद या खराब सेवा से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार बनाता हैं। उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष विक्रय) अधिनियम, 2021 ये अधिनियम धोखाधड़ी योजनाओं को रोकने के लिए प्रत्यक्ष विक्रय उद्योग को नियंत्रित करते हैं। उपभोक्ता संरक्षण (मध्यस्थता) विनियम, 2020 उपभोक्ता मध्यस्थता सेल बनाता है और मध्यस्थता के लिए प्रक्रिया बताता हैं। उपभोक्ता संरक्षण (उपभोक्ता आयोग प्रक्रिया) विनियम, 2020 उपभोक्ता आयोग के लिए प्रक्रिया का विवरण देता हैं। उपभोक्ता संरक्षण (सामान्य) अधिनियम, 2020 उपभोक्ता संरक्षण के लिए सामान्य प्रावधान देता हैं। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (विशेषज्ञों और पेशेवरों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया) विनियम, 2021 केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के लिए विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए प्रक्रिया बताता हैं। खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा को नियंत्रित करता हैं। कृषि उपज (ग्रेडिंग और अंकन) अधिनियम, 1937 खेती के उत्पाद की श्रेणी को मानकीकृत करता हैं। भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 सर्टिफिकेशन गुणों के जरिए उत्पाद की गुणवत्ता को पक्का करता हैं। भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 अनुबंध को नियंत्रित करता है, जो एग्रीमेंट में उपभोक्ता के अधिकारों पर असर डाल सकते हैं। माल बिक्री अधिनियम, 1930 सामान की बिक्री को नियंत्रित करता हैं।

देश में उपभोक्ता धोखाधड़ी के आम प्रकार जैसे – किसी व्यक्ति की निजी जानकारी उदाहरण, बैंक अकाउंट या पैन विवरण का धोखाधड़ी के लिए इस्तेमाल करना। स्कैमर ईमेल, एसएमएस या फोन कॉल के ज़रिए बैंक या दूसरी भरोसेमंद संस्थाओं की नकल करके लोगों से ओटीपी, पासवर्ड या कार्ड विवरण जैसी सेंसिटिव जानकारी निकलवा लेते हैं। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस और क्रेडिट कार्ड पर बिना इजाज़त के लेन-देन बहुत आम हैं। निवेश घोटाला जो असली मुनाफे के बजाय नए निवेशक के पैसे का इस्तेमाल करके ज़्यादा प्रतिफल का वादा करते है, इसमें ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस और ऑनलाइन रिटेलर साइट्स पर होने वाले स्कैम शामिल हैं। स्कैमर किसी असली बिज़नेस का दिखावा करके फ़ोन पर आपके पैसे या निजी जानकारी ले लेते हैं।

भारत में साइबर हमलों की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर दर्ज की गई साइबर सिक्योरिटी घटनाओं की संख्या 2022 में 10.29 लाख से बढ़कर 2024 में 22.68 लाख हो गई है, जो 120 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी हैं। देश में “डिजिटल अरेस्ट” के मामलों में भी काफी उछाल आया है, जिसमें धोखेबाज़ डीपफेक और नकली पहचान जैसे एडवांस तरीकों का इस्तेमाल करके बड़ी रकम ऐंठ रहे हैं, खासकर बुजुर्गों से। इसके जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है, और पूरे भारत में सीबीआई को इन मामलों की जाँच करने का अधिकार दिया है और ऑनलाइन बिचौलियों को जाँच में सहयोग करने का निर्देश दिया हैं। पिछले आठ महीने में महाराष्ट्र राज्य के 218 डिजिटल अरेस्ट केस में बेगुनाह लोग अपने 112 करोड़ रुपये गवां चुके हैं।

आर्थिक वर्ष 2022-23 में डुप्लिकेट उत्पाद की कीमत करीब 8 लाख करोड़ रूपये थी, जिसमें से आधे से ज़्यादा हिस्सा वस्त्र एवं परिधान का था, जो 4,03,915 करोड़ रूपये था। भारत में नकल विरोधी पैकेजिंग बाजार 2024 में 5.5 बिलियन रूपये का था, जिसके 2025-2033 के बीच 14.3 बिलियन रूपये तक पहुंचने का अनुमान हैं। इस साल जनवरी से जून तक छह महीने के समय में, ई-कॉमर्स सेक्टर में नकली, फेक और डुप्लीकेट उत्पाद की बिक्री से जुड़ी 7,221 शिकायतें राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर दर्ज की गईं। 2024 के सरकारी डेटा और रिपोर्ट्स के आधार पर अनुमान बताते हैं कि नकली दवाओं से होने वाला आर्थिक नुकसान करीब 7.5 बिलियन रूपये हैं। अनुमान है कि भारत में सप्लाई होने वाली सभी दवाओं में से 12-25 प्रतिशत तक नकली हो सकती हैं।

उपभोक्ता धोखाधड़ी होने पर तुरंत सहायता प्राप्त करें या शिकायत दर्ज करें। ऑनलाइन धोखाधड़ी होने पर राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in/) पर रिपोर्ट करें। सामान्य उपभोक्ता अपनी शिकायतों के लिए तुरंत ही राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन वेबसाइट (https://consumerhelpline.gov.in/public/) का इस्तेमाल करें या टोल-फ्री नंबर 1800-11-4000 या 1915 पर कॉल करके संपर्क करें या 8800001915 नंबर पर एसएमएस करें। डिजिटल तरीके से शिकायत दर्ज करने के लिए उपभोक्ता ऐप या नेशनल पोर्टल ऑफ इंडिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। बैंक धोखाधड़ी होने पर बैंकिंग लोकपाल से शिकायत करें। गंभीर आपराधिक घटना होने पर पास के पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करें। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत क्लेम की रकम के आधार पर जिला, राज्य या राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ग्राहकों के हितों के लिए अनेक उपभोक्ता संगठन और स्वयंसेवी संस्थायें भी मार्गदर्शन करती है, कुछ मामलों में, सिविल न्यायालय भी मदद पाने का एक विकल्प हो सकता है। अक्सर, झगड़ों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता जैसे तरीके भी मौजूद होते हैं।

उपभोक्ताओं की जिम्मेदारियां और जागरूकता ही धोखाधड़ी से बचा सकते हैं। एक नैतिक उपभोक्ता बनें, निष्पक्ष रहें और गलत नीति का प्रयोग न करें। सामान और सेवा का चयन करते समय उनकी गुणवत्ता और सुरक्षा का ध्यान रखें, उत्पाद या सेवा के बारे में जानकारी इकट्ठा करें और मौजूदा तकनीक में होने वाले बदलावों या नवाचार के बारे में खुद को अद्यावत रखें। उपभोक्ता स्वयम सोचें, अपनी आवश्यकताओ के अनुसार उत्पाद या सेवा का चुनाव करें। अपनी बात कहें, उत्पाद निर्माता और सरकार को अपनी ज़रूरतें और इच्छाएं दर्शाइए। उत्पाद या सेवा से नाखुशी के बारे में शिकायत करें और दूसरों को भी बताएँ। जागरूक उपभोक्ता बने, सुरक्षित रहें।

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