सिंधी पंचायत चुनाव … सालों से जमे “पूज्यनीयों” का रिटायर्डमेंट चाहते हैं युवा
अजय तिवारी
पूज्य सिंधी पंचायत चुनाव की तारीख के एलान से पहले ही कई एंगिल बनने लगे हैं। सालों से जमे लोगों की जगह नए चेहरों को मौका देने की आवाज उठने लगी है। अध्यक्ष पद पर मौजूदा महासचिव का प्रमोशन कर महासचिव किसी युवा को बनाए जाने की पैरवी कई लोग कर रहे हैं। पदों पर काबिज लेकिन निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटाने की बातें भी हो रही हैं। पिछले चुनाव में खेत रहे दो नाम इस बार चुनाव में फिर ताल ठोंकने की बात कर रहे हैं। इस सबके चलते आम राय से चुनाव की कोशिशों को कामयाबी मिलना आसान नहीं होगी।
सिंधी समाज की प्रतिनिधि संस्था पूज्य सिंधी पंचायत के त्रिवार्षिक चुनाव का बिगुल बज चुका है। साधारण सभा ने चुनाव अधिकारी बसंत चेलानी को बनाया है। सदस्यता अभियान पूरा होने के बाद तारीख का ऐलान किया जाएगा। थोक कपड़ा व्यापारी संघ की तर्ज पर आम सहमति से चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का दम भरा जा रहा है। अभी पंचायत पर बुजुर्ग समाजसेवी साबू रीझवानी और महासचिव माधु चांदवानी की जोड़ी काबिज है, जो सालों से पंचायत का काम कर रही है। चुनाव में बदलाव का पक्ष लेने वाले एक का रिटायर्डमेंट और एक के प्रमोशन की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा अध्यक्ष साबू रीझवानी को मार्गदर्शक बनाया जाना चाहिए। महासचिव माधु चांदवानी का प्रमोशन कर साबू रीझवानी के मार्गदर्शन में पंचायत के काम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इसकी पहल खुद साबू रीझवानी को करना चाहिए।
एक खेमा है पूरी तरह से पंचायत का चेहरा बदलकर युवाओं को आगे लाने की वकालत कर रहा है। उसका कहना है कि आम राय हो, लेकिन बदलाव की शर्त पर पुरानों को रिपीट होना है तो चुनाव बंद कमरे में एक बैठक में निपटाए जाने चाहिए। ज्यादातर पदाधिकारी सालों से जमे हैं और आगे भी जमे रहना चाहते हैं, यह ठीक नहीं है।
पंचायत के कई नाम ऐसे हैं जो केवल नाम के पदाधिकारी हैं, उनकी सक्रियता न के बराबर है। जो किसी खास के जन्म दिन पर बधाई, महापुरूषों की जयंती और पुण्य तिथि के मौके पर आना ही अपनी सक्रियता समझते हैं। पिछले चुनाव में हार का सामना करने वाले गुलाब जेठानी और महेश खटवानी पंचायत में खुद को देखना चाहते हैं। आम राय से चयन में उनको शामिल करना आसान नहीं होगा, क्योंकि मौजूदा में से दो की रवानगी होगी।…
अंत में…
जो भी हो चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे बहुत कुछ सामने आएगा। अभी तो जो बदलाव की बात करता है, उसे समझाने के लिए सक्रियता का दौर चल रहा है। पंचायत के चुनाव पंचायती न बने.. फैसला मतदान पेटी से तक न पहुंचे, लेकिन जरूरी होगा अपने लिए न सोचकर संगठन के लिए सोचा जाए।