संतनगर पत्रकारिता में जो सच्चाई के रास्ते पर चलेगा वहीं बचेगा
ढाई दशक से अधिक समय से बतौर पत्रकार राजधानी के दैनिक भास्कर, पत्रिका और नवदुनिया से जुड़े संतनगर ब्यूरो चीफ दिलीप मंगतानी इस बार के संतनगर की पत्रकारिता के कॉलम में।…. मंगतानी ने दो टूक कहा सच्चाई के रास्ते पर चलेगा वहीं एक दिन बचेगा…
भोपाल। रवि नाथानी
पत्रकारिता हो या कोई भी क्षेत्र जो सच्चाई के रास्ते पर चलेगा वही एक दिन बचेगा। गलत रास्ते पर चलने वाले को कुछ देर बेईमानी की चकाचौंध अच्छी लगे, लेकिन वह स्थायी नहीं होती, न ही मन को सुकून देती है। संतनगर क्या पत्रकारिता के क्षेत्र में सभी यह बात लागू होती है। पत्रकारिता में कहा जा रहा है कि बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन जो सच की राह पर हैं, उनके लिए कुछ नहीं बदला , न बदलेगा। हर क्षेत्र में लोग बदले हैं, इसलिए मिजाज बदला है।
संतनगर की पत्रकारिता अलग है
ढ़ाई दशक की पत्रकारिता के अनुभव की बात करें तो मेरा मानना है कि संतनगर की पत्रकारिता अलग है। यहां चौंकाने वाली पत्रकारिता कभी मकसद नहीं रही। यहां सेवाभावना और सेवा कार्यों को मुखरता के साथ सामने रखा गया है। अभी जरूर मामूली से अपवाद सामने आ रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की तेज रफ्तार से सूचनाएं, समाचार पहुंचाने की ललक के बाद भी अखबारों की लोकप्रियता कम नहीं हुई है।
ईमानदारी जिंदा रहनी चाहिए
पत्रकारिता के हर बदलाव के साथ ईमानदारी जिंदा रहनी चाहिए, लोगों को भी देखना चाहिए कि जो ईमानदार है उनका साथ दें। संतनगर की पत्रकारिता में भरपूर कवरेज मिलता रहा है। एक दौर था जब पुलआउट का चलन था, अखबारों में चार-चार पेज अलग से सप्ताह में आते थे। चूंकि संतनगर का कवरेज एरिया छोटा है, इसलिए मेरा मानना है कि वह स्पेस ज्यादा था, उसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन अधिक से अधिक मेटर पाठकों तक की पहुंचाने की जिम्मेदारी पत्रकारों ने निभाई है।
चलते- चलते
केवल पत्रकारिता का जहां तक सवाल है, तो सच तो यह है कि कोई करना ही नहीं चाहता। मामला आर्थिक रूप से भी जुड़ा है। आर्थिक पक्ष के लिए दूसरे सेक्टर से ज्यादातर लोग जुड़े यह बाद दशकों की पत्रकारिता पर भी लागू होती है।